महकमा-ए-एआरटीओ: काजल की कोठरी नहीं बल्कि काजल का भण्डारगृह

महकमा-ए-एआरटीओ: काजल की कोठरी नहीं बल्कि काजल का भण्डारगृह


खबरीलाल के जिले
का परिवहन महकमा इस समय लगभग सामान्य सा हो गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी वास्तविक खबरें कम और सकारात्मक खबरें ही मीडिया के जरिये ज्यादा पढ़ने-सुनने को मिल रही है। इस महकमे के प्रभारी का तबादला लगभग एक वर्ष पूर्व जबसे यहाँ से हुआ तब से और अब तक एकाध वाकिये को छोड़कर आरटीओ महकमा मीडिया की सुर्खियों में कम ही रहा। 

खबरीलाल ने बताया कि जब इस महकमे के इंचार्ज एक बाबू साहब हुआ करते थे तो वह किसी की नहीं सुनते थे। अपने हिसाब से विभाग, जनता और सरकार के हितों को देखते थे। लेकिन वह इस काजल की कोठरी से जब गये तो उन पर भी कालिख लगी बताई गई।  

खबरीलाल के अनुसार इस समय यहाँ का मीडिया पूरी तरह से महकमे के प्रभारी एवं अन्य मुलाजिमों द्वारा प्रबन्धित कर लिया गया है। इस समय आरटीओ महकमे की कमान पंडित जी के हाथों में है। उन्होंने ब्राण्डेड मीडिया का प्रबन्धन अपने तरीके से कर रखा है। यही कारण है कि विभाग में चल रही मनमानी, भ्रष्टाचार, दलाली, लूट-खसोट चरम पर होते हुए भी सार्वजनिक नहीं हो पा रही है। 

बकौल खबरीलाल पंडित जी के यहाँ तैनाती के शुरूआती दिनों में कुछेक मीडिया ने विरोधी स्वर मुखर किया और हुंआ-हुंआ करना शुरू किया था, परन्तु बड़े ही कुशल तरीके से सिद्धहस्त खिलाड़ी की तरह इन्होनंे मीडिया का प्रबन्धन कर लिया और अपने हित-मित्रों, स्वजातीयों के बरदहस्त से विभाग के रवैय्ये की बुलेट ट्रेन की स्पीड को बढ़ा दिया। इस समय विभाग की कोठरी काजल की नहीं बल्कि विभाग के सारे कमरे काजल के भण्डार से भरे हुए बताये जा रहे हैं। कार्यालय के समस्त पटलों पर कालिमा जमी हुई बताई जा रही है। 

खबरीलाल के कथनानुसार बाबू साहब के जाने के बाद से अब तक आर.आई. ही काफी सेहतमन्द हो रहे हैं। अनुभव प्राप्त कर रहे हैं। एक तरह से कहा जाये कि ये विभागीय परम्परा के सुचारू निर्वहन में पूर्ण दक्षता प्राप्त कर रहे हैं तो गलत नहीं होगा। खबरीलाल को इस बात का दुःख है कि एक युवा पीटीओ जिसकी पहली तैनाती यहाँ थी वह मीडिया मार और जतिवाद को झेल नहीं पाया और अपना तबादला करवाकर यहाँ से चला गया। 

नये पीटीओ के बारे में खबरीलाल ने जानकारी के अभाव में कुछ भी नहीं बताया। अलबत्ता उसने चहकते हुए कहा कि डीबीए पोस्ट पर जो सज्जन हैं, वह निहायत शरीफ, सुलझे और अक्लमन्द हैं। इस काजल भण्डार रूपी विभाग में रहते हुए पूर्णतया स्किलफुल हो रहे हैं। बीच में कुछ महीने पहले इनके बारे में इनके विजातीय मीडिया वालों ने विरोधी स्वर निकाला था, लेकिन यथा नामे तथा गुणे को चरितार्थ करते हुए डीबीए सर ने सबको चुप करा दिया था। 

खबरीलाल ने धीरे से बताया कि मुआफ करियेगा एक चीज तो बताना भूल ही गया- परिवहन महकमे में कार्यरत डीबीए को एआरटीओ-2 कहा जाता है। खबरीलाल ने कहा कि दद्दू कलमघसीट आपके साहबजादे का क्लासफेलो नेतागीरी कर रहा है। वह हरी टोपी लगाकर हर महीने ज्ञापन पर ज्ञापन देने जैसा सुकार्य करता रहता है। इस काम में उसने अपने लड़के को भी लगा रखा है। 10-15 स्त्री-पुरूषों को इकट्ठा कर कलेक्ट्रेट के सामने पारंपरिक धरनास्थल पर अपने संगठन की मासिक समीक्षा बैठक करता है, ज्ञापन देता है, मीडिया को प्रेस विज्ञप्ति जारी करता है, उस ज्ञापन में आरटीओ महकमा उसके मुख्य निशाने पर रहता है। क्या उसने आपको भी कभी कुछ दिया है, कहना पड़ा नहीं यार मुझे तो अब तक एक दमड़ी नहीं मिली। 

ऐसा वह क्यों करता है पूछने पर खबरीलाल ने बताया कि वह बड़ा अक्लमन्द लीडर है। जिन-जिन सरकारी विभागों को लक्ष्य बनाता है उनसे कम से कम एक महीने की चिकन बिरयानी, मटन करी/कोरमा आदि-आदि की व्यवस्था कर लेता है। 

खबरीलाल ने कान में कहा कि एआरटीओ कार्यालय में 4 वेण्डर बड़े घाघ किस्म के हैं। डी.एल. बनाने में इनकी कमाई हजारों रूपए प्रतिदिन की है। एक बहुचर्चित वेण्डर निकटवर्ती गाँव का है जिसका दबदबा अन्य वेण्डर्स पर तो है ही साथ ही आर.आई. व अन्य विभागीय कर्मी इसके रूतबे से प्रभावित हैं। यह एआरटीओ और आर.आई. का चहेता है। इसकी धुआंधार कमाई से दुःखी हरी  टोपी वाला नेता नियमित रूप से अपने ज्ञापन में विरोध स्वरूप इसका नाम लेता रहता है। -कलमघसीट

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