मन को गुलाल सा कर देना

मन को गुलाल सा कर देना


-प्रियंका वरमा माहेश्वरी

इस फागुन में भले गुलाल मत मलना

मगर मन को गुलाल सा कर देना


अबकी फागुन रंग देना मुझको भावों से

जैसे मन की जमीन पर बहुतेरे रंग बिखरे से


आंख मिचौली खेल लेना, छिप कर बादलों में

कभी धूप छांव बिखेरना मगर थप्पा जरूर दे जाना


नई कोंपलें खिलने लगी, फूल मुस्कुराने लगे

जैसे पक्षी वसंत गुनगुनाने लगे...


पुराने पत्तों का झर जाना नये पत्तों का उग आना

जैसे शिकायतों का खत्म हो जाना...


मेरे आंगन की मधुमालती फैल रही उल्लासित सी

जैसे प्रेम में मीरा नाच रही हो दीवानी सी...

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