पीड़ितों की कोतवाली और थानों में नहीं सुनी जाती है फरियाद
जिले की पांचों विधानसभा सीटों पर बीजेपी की हार का कारण है जिले का पुलिस महकमा
आम जनता को है डीएम और एसपी के तबादले का इंतजार
अंबेडकरनगर । जिले के प्रबु़द्धवर्गीय चिंतक, विचारक और पत्रकारों ने इस समय जिला प्रशासन और पुलिस महकमे के बारे में काफी कुछ कहना शुरु कर दिया है। इनके चिंतन सोशल मीडिया/इंटरनेट मीडिया/प्रिंट मीडिया में प्रकाशित व प्रसारित होने लगें हैं। इस तरह के वायरल हो रहे आलेखों को पढ़कर लोग वास्तविकता से भी रुबरु हो रहें हैं। अधिकांश पाठकों के मुंह से यह सुना जा रहा है कि इस तरह के विचार-आलेखों का प्रकाशन व प्रसारण वास्तविकता के करीब तो है हीं, साथ ही ऐसे विचार का प्रकाशन व प्रसारण करने वाले लेखक/पत्रकार साहसी हैं। बड़ी निडरता से स्पष्ट लेखन कर एक अत्यंत सराहनीय पहल कर रहें हैं।
अंबेडकरनगर के संदर्भ में इन पत्रकारों का कहना है कि जिले की जनता का विश्वास वर्तमान प्रशासन व पुलिस महकमे से उठ गया है। आलाहाकिम ने भी आम जनता से मिलने की जहमत उठाना भी बंद कर दिया है। सबसे खराब हालात पुलिस महकमे के हैं। यहां फरियादियों की जिले के किसी भी थाने में कोई सुनवाई नहीं होती। यही कारण है कि पीड़ित अपने दुख-दर्द व शिकायतें मुख्यमंत्री तक पहुंचाने लगें हैं। ऐसे फरियादियों की संख्या जिले में काफी बताई जाती है। हालिया बीते विधानसभा चुनाव में अंबेडकरनगर जिले की सभी पांच विधानसभा सीटों पर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था। जिसके बारे में, इन विचारकों का कहना है कि प्रसाशन व पुलिस महकमे की कार्यशैली ही मुख्य वजह रही है।
मौखिक रुप से सोशल मीडिया में लेखन कार्य कर रहे इन पत्रकारों ने कहा कि जिले के पुलिस महकमे का हाकिम अंगद का पांव बन गया है। लगभग ढाई साल से यहां जमा हुआ है और कथित रुप से मनमाना कर रहा है। अभी तक दो साल 4 महीने के कार्यकाल में इस हाकिम ने कोई ऐसा उतकृष्ट कार्य नहीं किया है, जिसका उल्लेख किया जाए। इन विचारकों ने कहा कमोवेश एक साल से जिले के हाकिम ने भी ऐसा कुछ नहीं किया है, जो प्रशंसनीय है। हाकिम उम्र में युवक हैं और डायरेक्ट आई0ए0एस हैं, इसलिए जिले के लोगों में इनसे काफी अपेक्षायें रहीं लेकिन वह भी पुराने घिसे-पीटे अफसरों की तरह होकर रह गये। इन विचारकों ने प्रदेश सरकार के उस आदेश का इंतजार भी बेसब्री से शुरु कर दिया है जिसमें जिला प्रशासन और पुलिस महकमें के इन हाकिमों के तबादले का आदेश होगा। तबादला हो या न हो लेकिन प्रशासन व पुलिस मुखिया के रवैये की चर्चा सोशल मीडिया में आम हो गई है। वायरल हो रहे विचारक/पत्रकारों के अनुसार - सत्यम सिंह, संपादक
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भले ही जनता की सुरक्षा के बड़े बड़े दावे करें लेकिन आज भी जनपद में न्याय पाना मुश्किल नजर आ रहा है।जहाँ योगी सरकार गुंडे माफियाओं को ऊपर या प्रदेश छोड़ने की धमकी देते रहे। वही अत्याचार से बचाने और पीडितों की हर संभव मदद कर उन्हें न्याय दिलाने की बात करती है।जिस महकमे पर कानून लागू करने का जिम्मा है, वही विभाग इन दिनों कानून से खेल रहा है। यूं कहें तो यूपी पुलिस इन दिनों या तो दबंगों से पस्त हो गई है या तो भ्रष्ट । कहीं यह महकमा बेबस है तो कहीं पैसे के लालच में जनता को बेबस कर रहा है।
हालांकि सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ चाहते हैं कि यूपी की पुलिस बेहतर परफॉर्मेंस करें लेकिन पुलिस है कि मानती ही नहीं।अक्सर देखा जाता है कि जब पीड़ित व्यक्ति थाने पर जाता है तो उसकी सुनवाई नहीं हो पाती। पुलिस उसका शिकायती पत्र ले तो लेती है, लेकिन इसका उपयोग अक्सर दूसरे पक्ष से आर्थिक लाभ लेने में करती है। इससे पीड़ित व्यक्ति को न्याय नहीं मिल पाता है।
यहां कुछ मामले ऐसे भी सामने आए हैं, जिनमें पुलिस शिकायतकर्ता के विरोध में ही गलत रिपोर्ट लगाकर भेज देती है। इससे पीड़ित व्यक्ति न्याय पाने के लिए भटकता रहता है। हालात यह हैं कि अब लोगों को सीओ स्तर से न्याय मिलने का भी भरोसा समाप्त हो गया है। पीड़ित को आस रहती है कि यदि वह एसपी से मिलेगा तो उसे न्याय मिल सकता है। इसी उम्मीद को लेकर पीड़ित व्यक्ति एसपी दफ्तर के चक्कर काटता रहता है।
सर्वाधिक शिकायतें अकबरपुर कोतवाली क्षेत्र की होती हैं।अफसर जनशिकायतों के निस्तारण को लेकर बैठकों में भी मातहत अधिकारियों को दिशा-निर्देश देते हैं और उनका प्राथमिकता के आधार पर निस्तारण करने की बात कहते हैं। यहां तक कि लापरवाही करने पर दंडित करने की बात कहने में भी कोई गुरेज नहीं करते, लेकिन जिले के थानेदारों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है।सरकार चाहे जिस पार्टी की रही हो, लेकिन थाने दलालों से मुक्त नहीं हो पाए हैं। राजनीतिक हस्तक्षेप का आलम यह है कि अक्सर नेता उत्पीड़न करने वालों और आपराधिक तत्वों के पक्ष में पैरवी करते नजर आते हैं। पीड़ित व्यक्ति को खुद ही अपनी लड़ाई लड़नी पड़ती है। यही हाल दलालों का भी है। वे भी अपराधियों की तरफदारी करके मोटी कमाई करते और कराते हैं। इससे पीड़ित पक्ष को थाने से निराशा हाथ लगती है।
एसपी दफ्तर पर आने वाली शिकायतों पर यदि गौर करें तो अधिकतर मामले जमीन के विवाद और घरेलू हिंसा से जुड़े होते हैं। जमीन के विवाद राजस्व विभाग से जुड़े होने के कारण पुलिस इन विवादों के निस्तारण में नजर आती है ऐसे मामले में भी न्याय उसी को मिलता है जो साहब को संतुष्ट कर ले जाता है। पुलिस का खौफ कुछ इस तरह लोगों में है कि लोग थाने में जाने से भी डरते हैं।
स्थानीय स्तर के बजाय उन्हें जिला और प्रदेश स्तर पर अपनी शिकायतें रखने में अधिक सहूलियत होती है। यही कारण है कि डीएम और एसपी के कार्यालयों में फरियादियों की भीड़ लगातार बढ़ रही है। जब फरियादियों को यहां से भी निराशा हाथ लगती हैं तो वह प्रदेश के आला अफसरों के अलावा मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी पहुंच जाते हैं। इधर अम्बेडकर नगर जिले के बड़ी संख्या में फरियादी मुख्यमंत्री के दरबार में पहुंच रहे हैं।
