आज सदाबहार एक्टर देव आनंद की 12वीं पुण्यतिथि है। हिंदी सिनेमा के इतिहास में देव आनंद पहले एक्टर थे, जिनकी लड़कियों में सबसे ज्यादा फैन फॉलोइंग थी। देव आनंद अपनी फिल्मों के साथ ही जीने के अंदाज के लिए भी जाने जाते थे। कम ही लोग जानते हैं कि फिल्मों में आने से पहले देव आनंद ब्रिटिश सरकार के मुलाजिम हुआ करते थे।
फिल्म स्टार बनने की चाह में अंग्रेजों की नौकरी छोड़ी और सिनेमा का स्ट्रगल शुरू किया। अपने दौर की सबसे खूबसूरत एक्ट्रेस सुरैया से अफेयर था। ये प्यार इतना गहरा था कि जब घर वाले इनके रिश्ते के खिलाफ हुए तो सुरैया ने ताउम्र शादी नहीं की। हालांकि देव आनंद ने अपनी को-एक्ट्रेस कल्पना कार्तिक से शादी की थी। वो भी फिल्म के सेट पर ही। फिर अलगाव भी हुआ।
जीनत अमान से भी देव आनंद का नाम जुड़ा। इतनी खूबसूरत अभिनेत्रियां जिंदगी में आईं, लेकिन देव साहब अकेले ही रहे। एक के बाद एक हिट फिल्मों ने इन्हें सुपरस्टार और सदाबहार सितारे का तमगा भी दिलाया। देव आनंद की कहानी अपने आप में सिनेमाई है। कई किस्से और बातें ऐसी हैं जो लोग कम ही जानते हैं।
कहानी के पहले चैप्टर में नजर डालते हैं देव आनंद के बचपन पर। देव आनंद का जन्म 26 सितंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में हुआ था। उनके पिता पिशोरी लाल आनंद गुरदासपुर जिले के नामी वकील थे। इनके मां-बाप के कुल नौ बच्चे हुए जिनमें वे पांचवी संतान थे।
देव आनंद को बचपन से ही फिल्में देखना और फिल्मी पत्रिकाएं पढ़ने का बहुत शौक था। वो रद्दी की दुकान से पत्रिका लाकर पढ़ा करते थे। रोज पत्रिका खरीद कर लाने से दुकानदार से भी उनकी दोस्ती हो गई थी, इस वजह से दुकानदार रोज देव आनंद के लिए पत्रिका छांटकर अलग से रख देता और कभी-कभी मुफ्त में भी दे देता था।
इसी दौरान उस पत्रिका वाले की दुकान पर देव आनंद ने एक दिन सुना कि अपनी फिल्म बंधन के लिए अशोक कुमार गुरदासपुर आ रहे हैं। जब अशोक कुमार आए तो उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ी। जहां एक तरफ लोग अशोक कुमार से मिलने और उनसे ऑटोग्राफ लेने के लिए उतावले थे, वहीं दूसरी तरफ देव आनंद दूर खड़े होकर उन्हें बस देख रहे थे।
देव आनंद के कॉलेज के अधिकतर छात्र आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जा रहे थे। उनका भी मन विदेश जाकर पढ़ाई करने का था, लेकिन घर की माली हालत ठीक नहीं थी इसलिए पिताजी उन्हें विदेश पढ़ाई के लिए नहीं भेज सके, क्योंकि उनके ऊपर और बच्चों की भी जिम्मेदारी थी।
उसी दौरान देव आनंद को इंडियन नेवी की नौकरी से भी रिजेक्ट कर दिया गया। इस बात से वो पूरी तरह टूट गए थे। इसके बाद उन्होंने बैंक में क्लर्क की नौकरी कर ली, लेकिन उनका सपना तो कुछ और ही था और उन्होंने मुंबई का रुख कर लिया।
जेब में 30 रुपए और आंखों में एक एक्टर बनने का सपना लेकर देव आनंद सपनों की नगरी मुंबई आ गए। भरी दोपहरी फिल्म स्टूडियो के चक्कर लगाने में बीत जाया करते थे। समय गुजर रहा था, लेकिन काम मिलने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी, जिसकी वजह से देव आनंद खुद की नाकामयाबी से हताश हो रहे थे।
काम की इसी जद्दोजहद के दौरान उनके 30 रुपए भी खत्म हो गए। भूख लगी और जब खाने के लिए जेब में हाथ डाला तो एक भी रुपए नहीं मिले। भूख और काम की इसी लालसा में उन्होंने स्टाम्प कलेक्शन के एल्बम को बेच दिया जो उन्होंने बरसों से इकट्ठा किया था। इस एल्बम से उन्हें 30 रुपए मिले थे, जिससे उन्होंने मुंबई में कुछ और दिनों तक गुजारा किया।
देव आनंद ने काम के सिलसिले में कई लोगों के दरवाजे खटखटाए, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। सपनों की नगरी में खुद के सपनों से दूर जाता देख उन्होंने 85 रुपए मासिक वेतन के साथ एक जगह क्लर्क की नौकरी कर ली। कुछ टाइम बाद नौकरी रास नहीं आई तो उसे भी छोड़ दिया। वजह ये भी थी कि उनका हाथ गणित में तंग था।
इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश आर्मी के सेंसर ऑफिस में काम किया। वहां उनका काम सेना के अधिकारियों के लिखे लेटर्स को पोस्ट करने से पहले पढ़ने का था। ब्रिटिश सरकार अपने अधिकारियों के खतों को भी सेंसर करती थी, ताकि कोई गोपनीय सूचना बाहर ना जा सके। हालांकि ज्यादातर चिट्ठियां वो ही होती थीं जो सेना के जवान अपनी पत्नी या प्रेमिकाओं को लिखा करते थे। इस काम में उनका मन रम गया था, क्योंकि उन खतों को पढ़ना उन्हें बहुत अच्छा लगता था।
सेंसर ऑफिस में काम करने के लिए देव आनंद को 165 रुपए मिलते थे, जो उनकी सभी जरूरतों के लिहाज से ज्यादा ही थे, लेकिन धीरे-धीरे उनको लग रहा था कि वो अपने सपनों से पीछे जा रहे हैं। देव आनंद बनना तो चाहते थे फिल्म स्टार, लेकिन एक सरकारी बाबू बनकर रह गए थे।
वो उस नौकरी को छोड़कर आगे बढ़ना चाहते थे, लेकिन कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। इसी उलझन के दौरान उनके हाथ एक ऑफिसर का लिखा खत लगा जिसने देव आनंद को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। उस खत में ऑफिसर ने अपने पत्नी को लिखा था- ‘काश, मैं अभी ये नौकरी छोड़ सकता तो सीधे तुम्हारे पास आता और तुम्हारी बाहों में होता।’
इस खत की एक लाइन काश, मैं अभी ये नौकरी छोड़ सकता ने देव आनंद को नए हौसलों और नई ऊर्जा से भर दिया और उन्होंने ये नौकरी छोड़ दी और निकल पड़े अपने सपनों को पूरा करने के लिए।
आराम की नौकरी छोड़कर एक बार वो फिर अपने फिल्म स्टार बनने के सपने को पूरा करने की राह पर चल दिए। उसी दौरान लोकल ट्रेन में एक मुसाफिर ने बताया कि ‘प्रभात फिल्म कंपनी’ अपनी आने वाली फिल्म के लिए एक सुंदर नौजवान की तलाश कर रही है।
अगले दिन देव आनंद पहुंच गए फिल्म कंपनी जहां उनकी मुलाकात कंपनी के मालिक बाबूराव पाई से हुई। बाबूराव पाई उनकी बातों और उनके बेबाक जवाब से बहुत प्रभावित हुए और कहा कि कल आकर पी.एल.संतोषी से मिल लेना।
फिर अगले दिन उनकी मुलाकात पी.एल संतोषी से हुई। उनको भी उन्होंने अपनी बातों और पर्सनैलिटी से इतना इम्प्रेस किया कि उन्होंने देव आनंद को 3 साल के कॉन्ट्रैक्ट के साथ प्रभात फिल्म कंपनी का हिस्सा बना लिया।
इस बैनर तले उनकी पहली फिल्म थी हम एक हैं, लेकिन ये फिल्म कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई थी। हालांकि यहीं से उनका फिल्मी सफर शुरू हो गया था। उन्हें इस दौरान कई और फिल्मों के ऑफर भी मिलने लगे।
इसके बाद देश के विभाजन के उथल-पुथल के दौरान ही देव आनंद का प्रभात कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट भी खत्म हो गया। हालांकि उनका ये संघर्ष लंबा नहीं चला और देव आनंद को अशोक कुमार की फिल्म जिद में काम मिल गया। ये वही फिल्म थी जिसने उन्हें बतौर एक्टर फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित किया था।
1948 की फिल्म विद्या में देव आनंद को उस दौर की एक्ट्रेस और सिंगर सुरैया के साथ काम करने का मौका मिला। उन दिनों सुरैया कामयाबी के शिखर पर थीं और देव आनंद इंडस्ट्री में नए थे। इसी फिल्म की शूटिंग के पहले दिन दोनों की मुलाकात हुई।
सुरैया को फिल्म डायरेक्टर ने देव आनंद से मिलवाया और कहा कि ये है हमारी फिल्म का नया हीरो। कोई और आगे की जानकारी देता उससे पहले देव आनंद ने खुद से ही खुद का परिचय दे दिया।
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