लोकतांत्रिक देशों की संसदों में महिलाओं की आधी हिस्सेदारी के लिए तय करना होगा लंबा सफर

लोकतांत्रिक देशों की संसदों में महिलाओं की आधी हिस्सेदारी के लिए तय करना होगा लंबा सफर

दुनिया के देशों में आधी दुनिया को सबसे पहले मताधिकार देने वाले देश न्यूजीलैंड से यह सुखद संदेश भी आ गया है कि वहां की संसद में महिलाओं की संख्या अब पुरुषों से अधिक हो गई है। न्यूजीलैंड की संसद में 59 पुरुषों के मुकाबलें अब 60 महिला सांसद हो गई है। उदारवादी लेबर पार्टी की नेता सोराया पेके मैशन ने पिछले दिनों सांसद के रुप में शपथ ली है। न्यूजीलैण्ड ने 1893 में ही महिलाओं को मताधिकार देकर दुुनिया के देशों के सामने एक मिसाल कायम कर दी थी। हांलाकि यह भी विचारणीय हो सकता है कि करीब 130 साल से भी अधिक समय के बाद संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी आधी हुई हैं पर इसे सकारात्मक सोच के सथ देखा जाना चाहिए। 





- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा


देखा जाए तो दुनिया के करीब आधा दर्जन देश ऐसे हैं जहां की संसदों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अच्छा खासा है। खासतौर से रवांडा ऐसा देश है जहां संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी 61 फीसदी से भी अधिक है। इसी श्रेणी में 53 फीसदी के साथ क्यूबा, 50 फीसदी के साथ निकारागुआ, मैक्सिको और यूएई आते हैं तो 47 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी के साथ आईसलैंड आ जाता है। हमारे देश में करीब 14 फीसदी ही महिलाओं की भागीदारी है। मजे की बात यह है कि हिमाचल प्रदेश में महिला वोटर अधिक होने के बावजूद केवल और केवल एक महिला चुनाव जीत कर आई है। खैर यह विषयांतर होगा। 


एम मोटे अनुमान के अनुसार अमेरिका का यह आंकड़ा करीब 27 प्रतिशत के आसपास बैठता है तो दुनिया की संसदों में महिलाओं की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत से कुछ ही अधिक देखने को मिल रही है। इन आंकड़ों में  कुछ बदलाव भले ही देखने को मिलें पर कमोबस हालात यही है।


दुनिया के देशों की विधायिका में महिलाओं की हिस्सेदारी को देखते हुए हांलाकि तेजी से बदलाव आ रहा है पर लोकतंत्र की हामी भरने वाले देशों की तुलना में दुनिया के छोटे और विकासशील देश अधिक आगे हैं। रंवाडा हो या क्यूबा या इसी श्रेणी के अन्य देश यह साफ हो जाता है कि लाख संकटों के बावजूद सत्ता में भागीदारी में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधें से कंधा मिलाकर चल रही है। हांलाकि न्यूजीलैण्ड के प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न का हालिया बयान- कई देशों में महिलाओं की स्थिति को लेकर अनिश्चितता है। हम जैसे जैसे आगे बढ़ रहे हैं ऐसा लगता है कि हम महिलाओं को प्रगति के मामलें में तेजी से पीछे की और खिसकता हुआ देख रहे हैं। 


हांलाकि यह उनका अपना सोच है पर इसमें कोई दो राय नहीं कि सत्ता में भागीदारी को अलग कर दिया जाए तो आज महिलाएं लगभग सभी क्षेत्रों में सफलता के परचम पहरा रही है। यह अच्छी बात भी है। दुनिया की बड़ी बड़ी कंपनियों में महिलाओं की अच्छी पकड़ देखी जा रही है तो जल, थल और नभ सभी में महिलाओं ने बिना किसी लैंगिक भेदभाव के अपनी जगह बनाई है। प्रशासनिक स्तरों पर भी महिलाओं की दक्षता का लोहा माना जाने लगा है।


सवाल यह है कि दुनिया के विकसित देश और खासतौर से लोकतंत्र की हामी भरने वाले देश भी आधी दुनिया की भागीदारी में क्यों पिछड रहे हैं। आखिर महिला सशक्तिकरण का नारा तो समूची दुनिया दे रहे हैं। कुछ पुरातनपंथियों को छोड़ भी दिया जाए तो इसमें अब कोई दो राय नहीं रही है कि महिलाओं को अब घर और बाहर सभी जगह बराबर का दर्जा दिया जाने लगा है। हांलाकि सामाजिक ताने-बाने में कुछ बदलाव देखने को मिल रहा है। संक्राति दौर होने से कुछ विद्रूपताएं भी सामने आती है पर यह तो मानना ही पड़ेगा कि दुनिया के कुछ अतिवादी सोच के देशों को छोड़कर बाकि सब देशों में महिलाओं की भाागीदारी लगभग सभी क्षेत्रों में बढ़ी है और लगातार बढ़ रही है। ऐसे में ंअब विधायिकाओं में भी महिलाओं की हिस्सेदारी बराबरी की करने का समय आ गया है।


जहां तक हमारे देश का सवाल है एक मोटे अनुमान के अनुसार हमारे यहां करीब 14 प्रतिशत हिस्सेदारी है। हांलाकि स्थानीय निकायों में महिलाओं के रिजर्वेशन से स्थानीय सरकार में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ने के साथ ही काफी बदलाव भी देखने को मिला है। पार्षद पति, सरंपंच पति, प्रधान पति, प्रमुख पति आदि की दखलंदाजी अब तुलात्मक रुप से देखे तो काफी कम हुई हैं और महिलाएं सफलता के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाने लगी है। ऐसे में यह कहना कि महिलाएं शासन का संचालन नहीं कर सकती पूरी तरह से नकार दिया गया है। देखा जाए तो पुराने मिथक टूटते दिख रहे हैं। खैर अमेरिका, ब्रिट्रेन, फ्रांसस जैसे अतिविकसित देशों और रुस चीन जैसे वामपंथी देशों को अभी महिलाओं की विधायिका में भागीदारी बढ़ाने के लिए बहुत कुछ करना होगा। हमारे यहां चाजे निचले स्तर पर ही हुआ हो पर उसका प्रभाव दिखने लगा है और आने वाले समय में और अधिक मुखरता देखने को मिलेगी। न्यजीलैंड ने दुनिया के देशों के सामने एक मिसाल पेश कर दी है तो रवांडा, क्यूबा आदि देशों की मिसाल सामने हैं ऐसे में विधायिका में महिला हिस्सेदारी बढ़ाने की दिशा मेें आगे बढ़ना ही होगा। हांलाकि दुनिया के देशों की संसदांे में महिलाओं की आधी हिस्सेदारी अभी दूर की कोड़ी ही दिखाई दे रही है।






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