लो आ गया पत्रकारिता का 'गटर काल '

लो आ गया पत्रकारिता का 'गटर काल '

देश इन दिनों बड़े ही अजीब-ो-ग़रीब दौर से गुज़र रहा है। मुख्यधारा का भारतीय मीडिया जो सत्ता के समक्ष 'षाष्टांग दंडवत ' हो चुका है। देश के लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पुकारा जाने वाला भारतीय मीडिया अब 'गोदी मिडिया' कहकर सम्बोधित किया जाने लगा है। पूरे विश्व की निगाहें इस समय उस चाटुकार भारतीय मीडिया पर टिकी हुई हैं जो सत्ता के प्रवक्ता के रूप में अपना काम कर रहा है। दुनिया देख रही है कि किस तरह भारतीय गोदी मीडिया सत्ता से नहीं बल्कि विपक्ष से अधिक सवाल कर रहा है। जिस मीडिया से निष्पक्ष पत्रकारिता की उम्मीद की जाती थी वह पूर्णतः न केवल पक्षपातपूर्ण हो गया है बल्कि सत्ता के गुप्त एजेंडे को भी आगे बढ़ा रहा है।


 





 - निर्मल रानी


देश के उच्च व सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार इसी मीडिया की कड़ी आलोचना कर चुके हैं। यह वही बेशर्म मीडिया है जिसने कोरोना जैसे महामारी के अभूतपूर्व संकट काल में भी साम्प्रदायिकता का ज़हर फैलाने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी। देश में सैकड़ों ऐसी घटनायें हो चुकी हैं जबकि मीडिया को अपने सिर आँखों पर बिठाने वाली जनता ने इनकी पक्षपातपूर्ण,अफ़वाहबाज़ व एजेंडा पत्रकारिता के कारण इन्हें बुरी तरह दुत्कारा व अपमानित किया है। जनता ने अनेक बार इन्हें धक्के मार कर कई आयोजनों से बाहर किया है। कई बार तो लाइव डिबेट के दौरान ही अतिथि वक्ताओं ने इनकी एजेंडापूर्ण ग़ुलाम पत्रकारिता के लिये इन्हें ख़ूब अपमानित किया। ऐसे चाटुकार,गलाफाड़ और मूर्ख क़िस्म के 'पत्थर कारों ' के चित्रों व उनके 'ज़लालत' भरे कारनामों से सोशल मीडिया भरा पड़ा है। 

                                                 


केवल अपनी चाटुकारिता व सत्ता की ख़ुशामद परस्ती को परवान चढ़ाने के लिये इस कथित पत्रकारिता ने पूर्णतः व्यव्सायिकता का लबादा ओढ़ लिया है। कुछ ऐसे मामले भी सामने आये जिसमें इसी 'ग़ुलाम मीडिया ' के लोग केवल अपने चैनल की टी आर पी बढ़ाने के लिये लोगों को रिश्वत देते हुये सामने आये। तंत्र,मन्त्र,जादू टोना,धर्म के नाम पर कहानी क़िस्से से लेकर स्टूडियो में विवादित विषयों पर बहस कराकर जनता में उत्तेजना फैलाने यहाँ तक कि स्टूडियो में लात जूते चलाने गाली गलौच करने तक के दृश्य देखे जा चुके हैं। इन्हीं घटिया व भोंदू एंकर्स को रिपोर्टिंग के दौरान 'नागिन डांस ' करते भी देखा गया है। अभद्र भाषा का प्रयोग,गालियां, वक्ताओं को अपमानित करना यहाँ तक कि न्यूज़ रूम की मिलीभगत से स्टूडियो में बम और रॉकेट जैसे कट आउट लाकर डर धौंस जमाने की बातें करना, यही आज के भारतीय मुख्य धारा के मीडिया का स्तर रह गया है। और उसपर तुर्रा यह भी कि यही बदनाम ज़माना मीडिया जिसके चलते पूरी भारतीय पत्रकारिता पूरी दुनिया में बदनाम हो रही है वही 'गोदी मीडिया ' स्वयं यह भी तय कर रहा है कि कौन राष्ट्रभक्त है और कौन राष्टद्रोही। वही बता रहा है कि कौन देश की छवि धूमिल कर रहा है और कौन देश का नाम रौशन कर रहा है। 

                                             


गत दिनों इसी बेशर्म मीडिया का एक निम्नतम स्तर का कवरेज उस समय देखने को मिला जबकि अपराधी से नेता बने पूर्व सांसद व विधायक अतीक़ अहमद के साबरमती से प्रयागराज कूच के बारे में रिपोर्टिंग की जा रही थी। इलाहबाद में हुये उमेश पाल अपहरण कांड में 28 मार्च को अदालती फ़ैसला आने की ग़रज़ से अतीक़ अहमद को गुजरात की साबरमती जेल से प्रयागराज लाया जा रहा था। ख़बरों के अनुसार उसे 45 पुलिसकर्मियों और 6 वाहनों के क़ाफ़िले के साथ भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच इलाहबाद लाया जा रहा था। लगभग 1300 किलोमीटर लंबे इस मार्ग पर ख़ुफ़िया व सुरक्षा तंत्र पूरी तरह मुस्तैद थे। साबरमती जेल से निकलते समय मीडिया से बात करते हुये अतीक़ अहमद ने अपनी जान को ख़तरे का संदेह जताया था। अतीक़ ने कहा था कि - कोर्ट के कंधे पर रखकर मुझे मारना चाह रहे हैं। अतीक़ के वकील ने भी यही कहा था कि उन्हें अतीक़ का फ़र्ज़ी एनकाउंटर किये जाने का डर है। उधर 2 जुलाई 2020 को कानपुर के निकट हुये बिकरू काण्ड में जिसमें कि एक पुलिस उपाधीक्षक व एक थानेदार सहित आठ पुलिस कर्मियों की हत्या कर दी गयी थी और इसी अपराध के मुख्य आरोपी विकास दूबे को जिसे उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर से गिरफ़्तार कर कानपुर लाया जा रहा था और कानपूर के क़रीब ही उसे मुठभेड़ में यह बता कर पुलिस ने मार गिराया था कि गाड़ी पलटने के बाद वह पुलिस कस्टडी से भागना चाह रहा था। इस विकास दूबे मुठभेड़ काण्ड के पूरे संदिग्ध घटनाक्रम के बाद अतीक़ अहमद की साबरमती जेल से प्रयागराज तक की निगरानी का पूरा कवरेज करने तक की बात तो समझ में आ सकती है। 

                                            


परन्तु झाँसी पुलिस लाइन में रात बिताने के बाद जब अतीक़ को लेकर पुलिस क़ाफ़िला इलाहबाद के लिये चला तो रस्ते में अतीक़ को लघुशंका महसूस हुई। इसके लिये पुलिस ने रास्ते में गाड़ी क्या रोकी कि क़ाफ़िले के साथ चल रहे इस बेशर्म मीडिया के कई चैनल अतीक़ के ठीक पीछे जाकर उसके मूत्र विसर्जन का कवरेज करने लगे। वहां तो उसका मूत्र विसर्जन लाइव कवर करने के लिये बेशर्म मीडिया के कई चैनल पेशाब की धार को क़रीब से क़रीब जाकर देखने के लिये आपस में ही धक्का मुक्की भी करने लगे। और सीधे प्रसारण में उसके पेशाब की धार तक दिखाने लगे। और चीख़ चीख़ कर उसके मूत्र विसर्जन में भी ' उत्तेजना ' देखने लगे। शायद भारतीय मीडिया की बेशर्मी भरे प्रसारण के इतिहास में भी यह सबसे शर्मनाक प्रसारण था जिसमें देश की जनता को भला क्या दिलचस्पी हो सकती है कि वह किस अंदाज़ में कब कहाँ और कितना मूत्र विसर्जित कर रहा है। परन्तु घटिया व बेशर्म गोदी मीडिया के लिये शायद यह कौतूहल भरा क्षण रहा होगा तभी इस किसी के अति व्यक्तिगत क्षण को भी उसने चीख़ चिल्ला कर पेश किया ? बेशर्म मीडिया के इस कवरेज को देखने के बाद अब मुख्यधारा की कही जाने वाली भारतीय पत्रकारिता को पत्रकारिता का 'गटर काल ' कहना बिल्कुल ग़लत नहीं होगा। 

                                                                                      

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