कोरोना की दहसत ने एक बार फिर कोरोना प्रोटोकाल की पालना के प्रति गंभीर होने के लिए चेता दिया है। ऐसे में कोरोना प्रोटोकाल को लागू करने या लोगों को पालना के प्रति सावचेत करने का समय आ गया है। यह इसलिए भी जरुरी हो गया है कि देष में कोरोना प्रोटोकाल की पालना लगभग नहीं की स्थिति में पहुंच गई है तो लोगों की गंभीरता भी नहीं रही है।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
देश में एक तरफ जहां दिन प्रतिदिन कोरोना के मामलों में उछाल आता जा रहा हैं वहीं कोरोना प्रोटोकाल की पालना करीब करीब समाप्त हो चुकी है। पिछले दिनों में ओसतन प्रतिदिन देश में पांच हजार से अधिक कोरोना पोजिटिव आ रहे हैं और कोरोना के कारण भले ही कम हो पर मौत के मामलें भी आने लगे हैं। एक सप्ताह में ही कोरोना के कारण 68 मौत के समाचार है। हांलाकि केन्द्र व राज्य सरकारें सजग तो होने लगी है व 10 और 11 अप्रेल को समूचे देश में दो दिन की मॉक ड्रिल कर कोरोना से निपटने की तैयारियों या यों कहें कि दवाओं व संसाधनों की उपलब्धता को जांचा परखा जा सके। पर जिस तरह से देष के पांच राज्यों में कोरोना मामलों की बढ़ोतरी ने चिंता में ड़ाल दिया है उसे देखते हुए सतर्कता और सजगता जरुरी हो गया है।
लगभग समूची दुनिया में यह माना जा चुका है कि कोरोना से बचाव के लिए कोरोना प्रोटोकाल की पालना एक कारगर माध्यम है। आज हम मास्क पहनना भूल गए हैं तो सेनेटाइजर का उपयोग भी लगभग बंद ही हो गया है। इसी तरह से दो गज की दूरी की बात भी इन दिनों तो बेमानी हो चुकी है। मास्क के उपयोग को लेकर पिछले दिनों लोकल सर्कल द्वारा कराए गए सर्वें ने तो चिंता में ही ड़ाल दिया है। सर्वें में सामने आया है कि केवल और केवल 6 प्रतिषत लोग ही मास्क के प्रति थोड़े गंभीर दिख रहे हैं। यानी की 6 प्रतिशत लोग ही मास्क का उपयोग कर रहे हैं। हालात तो यह है कि कोरोना तो दूर वाइरस जनित बीमारियों के फैलाव के बावजूद देष के किसी भी क्षेत्र के किसी भी अस्पताल में चल जाएं कोई इक्के दुक्के लोग ही मास्क लगाएं हुए दिखाई देते हैं।
यह तो अस्पतालों के हालात है जहां बीमार या उनके तीमारदार ही जाते हैं। ऐसे में यह अपने आप में गंभीर हो जाता है। बाजार, सार्वजनिक परिवहन साधनों, मॉल्स, सिनेमागृहों, राजनीतिक रैलियों, धार्मिक स्थलों आदि पर खोजने से भी मास्क लगाए कोई नहीं दिखते हैं। ऐसे में कोरोना संक्रमण के नए मामलों के आना चिंता का सबब बन ही जाता है। खासतौर से केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा और तमिलनाडू में जिस तरह से कोरोना संक्रमण का अधिक फैलाव देखा जा रहा है यह चिंतनीय है।
दरअसल कोरोना काल के अनुभव आज भी रुह कंपा देने के लिए काफी है। लंबा लॉक डाउन, सबकुछ बंद, प्रवासी श्रमिकों की हाईवे पर रेला, वेंटिलेटरों और ऑक्सिजन बेड की तलाश में भटकते लोगों और कोरोना संक्रमण से मौत के ग्रास बनते लोगों के चित्र आंखों के समाने घूमने लगते है तो सिहर जाते हैं। दवाओं की कमी, दवाओं की अनुपलब्धता और आक्सीजन की कमी को भूले नहीं हैं। ऐसे में कोरोना काल के अनुभवों को देखते हुए इन दिनों बढ़ते कोरोना संक्रमण को हल्के से लेने की भूल नहीं करनी होगी।
सरकार को जनहित में जहां अवेयरनेस अभियान तो चला ही देना ही चाहिए वहीं सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनने की अनिवार्यता सख्ती से लागू करने की पहल कर देनी चाहिए। खासतौर से चिकित्सालयोें में तो सख्ती से पालना होनी ही चाहिए। इसी तरह से सार्वजनिक स्थानों पर सेनेटाइजर के डिस्प्रेंसर लगा दिए जाए तो सरकार के लिए यह कोई महंगा सौदा नहीं होगा। सरकार ही क्यों स्वयं सेवी संस्थाओं और दानदाताओं को भी आगे आकर अवेयरनेस अभियान चलाकर लोगों को सावचेत करने का समय आ गया है। केवल सरकार के भरोसे नहीं रहकर सभी सजग लोगों और संस्थाओं को आगे आना चाहिए।
यह नहीं भूलना चाहिए कि इन प्रीकोशन साधनों के उपयोग पर होने वाले खर्च से कई गुणा नुकसान हम लोग व सरकार लॉकडाउन और अन्य कार्यों पर भुगतती रही है। सबकुछ बंद हो उससे बेहतर सुरक्षा साधनों के प्रति अवेयरनेस और सुविधाएं उपलब्ध कराने से अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। उद्यमियों को भी आगे आना चाहिए और अपने पास से नहीं अपितु कारपोरेट सोशियल रेस्पांस्बेििलटी के तहत उपलब्ध राषि से ही इस तरह के कार्यक्रमों का संचालन किया जता है तो यह अच्छी पहल मानी जा सकती है। कोरोना में हमने अपने या अपनों में से लोगों को खोया है। ऐसे में गंभीर हो जाना चाहिए वहीं अस्पतालों को अपनी व्यवस्थाओं को समय रहते चाक चोबंद कर लेना चाहिए।
.jpg)