Ambedkar Nagar : अकबरपुर चीनी मिल से संबंद्ध गन्ना किसानों का शोषण जारी...

Ambedkar Nagar : अकबरपुर चीनी मिल से संबंद्ध गन्ना किसानों का शोषण जारी...

  • गन्ना माफिया, दलाल की सक्रियता बढ़ी, क्रेशर मालिकों की हुई पौ बारह
  • कतिपय सट्टा धारी किसान बेचने लगे हैं पर्चियां, तौल केंद्रों पर घटतौली जारी



उत्तर प्रदेश का अंबेडकरनगर जिला कृषि प्रधान जिलों में एक है। यहां धान, गेंहू, गन्ना और कमोवेश सब्जियों का उत्पादन यहां किया जाता है। इन फसलों को जिले के किसानों का नकदी फसल कहा जाता है। विंडबना यह है कि इन फसलों और इनके उत्पाद की बिक्री किसाना सीधा नहीं कर पाता है। मजबूरन, उन्हें दलाल एवं बिचौलियों का सहारा लेना पड़ता है। 


समर्थन मूल्य प्राप्त तीन लचर व्यवस्था के चलते नकदी फसलों धान, गेंहूं और गन्ना को बेंचने के लिए अन्नदाता किसान बिचौलियों, दलालों, माफियाओं और बनियों का सहारा लेता है। इस तरह वह अपनी जरुरत पर औने-पौने दाम पर खून-पसीने की कमाई बेचकर घर-गृहस्थी का कार्य करता है। सब्जी जिसे मार्केट में बेचने के लिए मंडी समिति में संचालित आढ़तों पर ले जाकर सब्जी उत्पादक किसान भी औने-पौने रेट पर अपना उत्पाद बेच देता है। जिसके एवज में आढ़तियों द्वारा दिए गए मनमाना अनापेक्षित पैसा ही हाथ आता है। 


जिले में गन्ना किसानों के सघन उत्पाद को देखते हुए डेढ़ दशक पूर्व मिझौड़ा स्थित ग्राम पंचायत के निकट अकबरपुर चीनी मिल्स के नाम से एक शुगर फैक्ट्री का निजी प्रबंधन द्वारा स्थापना की गई। जहां अब जिले के ग्रामीणांचलों में गन्ना उत्पाद कर रहे किसान इसी चीनी मिल में अपना गन्ना सरकारी रेट पर बेंचकर लाभान्वित होते हैं। लेकिन यह उनके लिए क्षणिक प्रसन्नता का विषय ही होती है। 


मिल में पेराई सत्र शुरु होने से पूर्व और अंत तक गन्ना माफियाओं, सट्टा माफियाओं , दलालो, बिचौलियों, क्रेशर संचालकों की आमद रफ्त इन किसानों तक होने लगती है। पैसों की जरुरत होने और समय पर चीनी मिल में गन्ना न बिक पाने की स्थिति में जिले का छोटा व मंझोला गन्ना किसान माफिया/दलाल को अपनी मेहनत की कमाई सौंप देता है। क्रेशर संचालक भी सरकारी रेट से कम कीमत पर गन्ना खरीद करता है। किसान पैसों की अत्यधिक आवश्यकता होने की वजह से मजबूरी की दशा में रहता है। इस मजबूरी का फायदा माफिया-दलाल, मिल कर्मचारी और क्रेशर संचालक भरपूर उठाते हैं। 


गन्ना किसानों का मनमाना दोहन करते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। इस स्थिति/परिस्थिति और गन्ना किसानों का दोहन एक स्थाई परंपरा बन चुकी है। पेराई सत्र शुरु होते ही तौल केंद्रों पर घटतौली शुरु हो जाती है। गन्ना किसानों को मिल से पर्ची न मिलने की वजह से माफियाओं के शरण में जाना पड़ता है। उनके नाम से बनी पर्ची पर गन्ना किसान अपने गन्ने की तौल कराता है। पैसा सट्टाधारी माफिया के बैंक अकाउंट में जाता है। 


सट्टाधारी से गन्ना किसान अपने बेंचे गए गन्ने का मूल्य मांगने पर हजार-दो हजार रुपए कम ही वापसी पाता है। इसके अलावा सट्टा निर्माण में गन्ना विकास परिषद विभाग व समिति द्वारा किसानों को दौड़ा-दौड़ाकर परेशान किया जाता है। परेशानी से हलकान किसान भविष्य में गन्ना उत्पाद न करने की कसम भी खाता है। लेकिन यह कसम उसकी आसन्न प्रसवा गभर्वती मां की प्रसव वेदना की तरह ही होती है। यानि....। 


इस समय अकबरपुर चीनी मिल स्थित मिझौड़ा अंबेडकरनगर में पेराई सत्र शुरु हो चुका है। माफिया, दलाल, सट्टाधारी, गन्ना किसान सभी सक्रिय हो गए हैं गन्ना किसानों को माफियाओं, दलालों, क्रेशर संचालकों की शरण में जाने की नौबत आ गई हैं। मांगलिक कार्य शुरु हो गए हैं। किसानों के घर-परिवार में परिवारिक घरेलू खर्च , मांगलिक कार्यों का खर्चा, रिश्तेदारियों में आवागमन और उपहारों का खर्चा इनके समक्ष सुरसा की तरह विशाल मुंह खोले खड़ा है। किसानों की मजबूरी का लाभ माफिया, सट्टा धारी किसान, दलाल और क्रेशर संचालक भी भरपूर उठाने लगे हैं। 


- सत्यम सिंह (7081932004) 9454908400




सूत्रों के अनुसार, गन्ना माफिया, दलाल और क्रेशर संचालक तथा सट्टाधारी पेशेवर किसान अकबरपुर चीनी मिल प्रबंधन से घनिष्ठ संबंध कायम रखते हैं। गन्ना किसानों का भरपूर शोषण किया जा रहा है। इसमें प्राप्त धन की आपसी मिल-बांट की जाती है। तौल केंद्रों पर घटतौली जैसी परपंरा कायम है। 


पीड़ित किसानों ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि प्रति छोटी से बड़ी गाड़ी पांच से दस कुंटल गन्ना किसानों का माल का वजन कम दर्शाया जाता है। इस अवैध गन्ने को एकत्र कर ट्रकों में भरकर माफिया, मिल प्रबंधन और संबंधित सरोकारियों के सहयोग से मिल गेट पर बेचा जाता है। जिसकी कीमत माफिया और मिल प्रबंधन/प्रशासन से जुड़े हुए गन्ना किसानों के नाम विक्रित गन्ने का धन बैंक अकांउट में भेजा जाता है। मुख्य दलाल द्वारा सट्टाधारी किसानों को इस अवैध बिक्री में हिस्सेदार बनाकर हिस्सा-बांट किया जाता है। 


गन्ना किसान की इन शोषणकर्ताओं पर किस स्तर से नियंत्रण लग सकता है। इसके बाबत लोगों को कुछ भी मालूम नहीं है। सूत्रों ने बताया कि इस चीनी मिल प्रबंधन/प्रशासन के उच्च पदस्थ अधिकारियों, कर्मचारियों को अपना स्वजातीय बताकर दलाल व माफिया द्वारा किसानों के मुंह से निकलने वाली विरोधी आवाजों को दबा दिया जाता है। 




बताया गया है कि जिले की एकमात्र चीनी मिल के माफिया, दलाल, एजेंट, क्रेशर मालिक और सट्टाधारी अवैध व्यवसाई किस्म के गन्ना किसानों की आपसी सांठ-गांठ जिले ही नहीं, अपितु नजदीकीं बाह्य जिलों में भी चर्चा का विषय बनी हुई है। यह लोग गन्ना-किसानों को परेशानी मुक्त करने के नाम पर उनसे सस्ते दामों पर गन्ना खरीद कर रहे हैं और उन्हें सीधा मिल गेट के अंदर तौल केंद्र पर ले जाकर मनचाहा वजन दर्शाकर मिल को बेच रहे हैं। मिल द्वारा गन्ना क्रय केंद्रों पर माफिया/दलाल हावी हो चुका है। 


सुपुष्ट सूत्रों के अनुसार, गन्ने की खरीद किसानों से की जा रही है और सीधा मिल गेट पर इसका फरोख्त किया जाता है। जिले के तमाम जागरुक, बुद्धिजीवी एवं पीड़ित किसानों ने जिला प्रशासन के मुखिया, प्रदेश शासन और गन्ना विभाग के अधिकारी से मांग की है कि अकबरपुर चीनी मिल प्रबंधन/प्रशासन व माफिया दलाल गठबंधन से उन्हें मुक्ति दिलाई जाए। उनके गन्ने की खरीद मिल द्वारा स्थापित तौल केंद्रों और सीधा मिल गेट स्थित तौल केंद्र पर निष्पक्षता से की जाए। इन दलालों और माफियाओं की करतूतों से जिले का गन्ना किसान शोषण का शिकार हो रहा है। मिल प्रबंधन की कृपा से ऐसे लोग समय पर गन्ना तौल के लिए जारी होने वाली पर्चियां आसानी से प्राप्त करते हैं। उसी आधार पर बगैर सट्टाधारी व सट्टाधारी किसानों के गन्ने की खरीद पर सीधा मिल गेट को भेजकर अपनी जेबें भर रहे हैं। 


अकबरपुर चीनी मिल और गन्ना माफियाओं का यह गठजोड़ कैसे टूटेगा, क्या प्रदेश सरकार इस पर नियंत्रण लगा सकती है, या फिर जिला मजिस्ट्रेट स्तर पर इस काकश को नियंत्रित कर गन्ना किसानों को दोहनमुक्त किया जा सकता है। गन्ना विकास परिषद का क्या दायित्व है, आज तक जिले का आम गन्ना किसान नहीं जान सका है। जिले में गन्ना विकास परिषद का दफ्तर कहां है। इसके क्या अधिकार-कर्तव्य हैं। शायद कम ही लोग जानते हैं। 

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