खुशी के माहौल में बरसाती फुहारों ने चार चांद लगा दिये। ईद का मौका और बारिस की रिमझिम बूंदें हर किसी के दिल में गुदगुदी पैदा करने का सबब बनी हुई थी। हर कोई अपनी मस्ती में मस्त भोर से ही इंतजामात में लगा हुआ था। हमें भी ढेर सारे फोन आ रहे थे। मुबारकबाद लेने-देने का सिलसिला बदस्तूर जारी था। महाराज छत्रसाल की नगरी के आबिद सिद्दीकी ने अपने ही अंदाज में न केवल मुबारकबाद दी बल्कि दुनिया की खुशहाली के लिए मालिक से दुआ करने की बात भी कही। इसी दौरान इस्लामिक तामील की अन्तिम पढाई कर चुके मुफ्ती इश्तयाक अहमद खान मिस्वाही की याद ने दिमाग पर दस्तक दी। दिमाग पर दस्तक और उनके फोन की घंटी का बजना एक साथ हुआ। इसे यादों की जुगलबंदी कहना गलत न होगा। एक-दूसरे को मुबारकबाद देने के बाद हमने उनसे ईद के फलसफे को समझाने की गुजारिश की। उन्होंने तत्काल तशरीफ लाने का न्यौता दे डाला। हम भी कब चूकने वाले थे।
आपसी मुलाकात से जहां दिल-ओ-दिमाग में ताजगी भर जाती है, वहीं गले मिलने से अनदेखी खुशियों में शिरकत दर्ज होते भी देर नहीं लगती। मस्तान शाह कालोनी में स्थित उनके दौलतखाने पर पहुंचे। उन्होंने दिली खुशी जाहिर करते हुए हमारा इश्तकवाल किया। हमने गले लगकर एक दूसरे को मुबारकबाद दी। मेहमानखाने में बडे से सोफे पर बैठाया। मेवादार मीठी सेवइयां, दही पकौडी, सूखे मेवों की पापडी सहित दर्जनों पकवान दीवान पर सजाये गये थे। अपनी पसन्द के पकवान लेने के लिए हमारे हाथ में प्लेट थाम दी गई। कुछ सेवइयां और मेवों की पापडी लेने के बाद दही पकौडी का लुत्फ सतरंगी चटनी के साथ लिया। इस काम से फारिग होकर अब दिमागी खुराक के लिए हमने उनसे गुफ्तगू शुरू की। खुशियों के इस मौके के दुनियावी मतलब जानने की ख्वाइश जाहिर की। उन्होंने कहा कि खुदा का मेहमान होता है बंदा आज के दिन। भाईचारे, मोहब्बत, खुशियां बांटने, लोगों की परेशानियां दूर करने और दुनियावी दूरियां पाटने का नाम है ईद।
खुदा के बताये रास्ते पर चलकर नेकियां करने के लिए लिए हमें आगे आना चाहिये। वे अपनी मस्ती में कहीं खो से गये। उनके हौंठ हिलते रहे, अल्फाज निकलते रहे। वे खुदा के बताये रास्तों को बयान करते जा रहे थे और हम दुनिया के खुशनुमा होते माहौल में उडान भरने लगे। दरवाजे पर हुई। उनके हौठ थम गये, हमें अपनी उडान से वापिस आना पडा। बाहर कुछ लोग उन्हें मुबारकबाद देने आये हुए थे। सभी ने मेहमानखाने में आकर हम दौनों लोगों से लगे मिलने के बाद दीवान पर सजाये गये पकवानों का मजा लिया और इजाजत लेकर चले गये। फिर हमें उनसे अकेले में बात करने का मौका मिल गया। मुफ्ती साहब ही पिछले कई सालों से ईद की नबाज पढाते चले आ रहे हैं, सो हमने पूछ ही लिया कि वे ईद की नबाज पढाते वक्त कैसा महसूस करते हैं। उन्होंने आसमान की और सिर करके ऊपर की ओर ताकते हुए कहा कि अल्लाह के सामने हम खडे हैं और वह हमें देख रहा है। तब हम जिस्म की बंदिशों से कहीं बहुत दूर चले जाते हैं।
जहां अहसास दम तोड देते हैं। बस यूं समझिये कि अजीब सी कौफियत होती है उस वक्त, जिसे अल्फाजों में बयान नहीं किया जा सकता है। वे एक बार फिर कहीं खो से गये और हम उनके अल्फाजों के सहारे फिर उडान पर थे। एक दम खुशी का माहौल, चारों ओर रंगीनियां और हम उनमें डूबते चले जा रहे थे। ख्वाबों के मानिंद सब कुछ खुली आंखों के सामने से गुजर रहा था और हम किसी रूहानी दुनिया के बीच हल्के होते जा रहे थे। अभी न तो उडान पूरी हुई थी और न ही खुदा की खुदाई का बयान करने का सिलसिला ही थमा था, परन्तु मजबूरी थी, फिर से लोगों की आमद शुरू हो गई थी। चार लोगों की वापिसी होती तो सात लोग आ जाते। हमने उनसे फिर मिलने की बात कह कर इजाजत मांगी। उन्होंने एक बार फिर गले से लगाया और कहा कि जब भी शहर में हों, जरूर आयें, मिलकर बेहद सुकून मिला। हमने भी उनकी बात पर हामी भरी और बाहर गली में खडी अपनी गाडी में जा बैठे। ईद के मायनों के पीछे छुपी मंशा को ही पूरा करने में लग जायें, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे चारों ओर फैलाई गयी दुनियावी दूरियों की खाई, खुद-व-खुद पट जायेगी और दुनिया में अमन, चैन और सुकून की खुशबू फैलने लगेगी। इस बार बस इतना ही। अगले हफ्ते एक नयी शक्सियत के साथ फिर मुलाकात होगी, तब तक के लिए खुदा हाफिज।