आप यकीन नहीं करेंगे, उन्होंने 16 साल तक इस स्कूल में बतौर रसोइया काम किया। हलधर ने इस काम को छोड़कर स्टेशनरी की एक छोटी सी दुकान खोल ली। इसके लिए उन्होंने बैंक से 1,000 रुपए लोन भी लिए। हलधर नाग ने अपनी पहली कविता धोडो बारगाछ साल 1990 में लिखी थी। जिसका मतलब होता है 'बरगद का बूढ़ा पेड़' और इसे एक लोकल मैगजीन में जगह मिली थी। इसके बाद उन्होंने अपनी चार कविताओं को पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए भेजा। हलधर समाज, धर्म, मान्यताओं और बदलाव जैसे विषयों पर लिखते हैं। उनका कहना है कि कविता समाज के लोगों तक संदेश पहुंचाने का सबसे अच्छा तरीका है।
वे कहते हैं कि लोगों की बात लोगों की जुबान में कहने से लोगों को अपनापन महसूस होता है और लड़ने का हौसला मिलता है। एक जन आंदोलन की तैयारी इसी तरह होती है। हलधर के सादगी भरे पहनावे से बयां होता है कि वे बेहद सामान्य श्रेणी से उठकर आये है। इसके बावजूद वे कहते हैं कि पेट दिखाकर किसी से संवेदना की भीख मांगना उनका मकसद नहीं है। यही वजह है कि सिर्फ तीसरी कक्षा तक पढ़े हलधर अपनी जन आवाज से कई स्कॉलरों को अपनी कविताओं पर रिसर्च करने के लिए आकर्षित करते है।