पत्रकारिता का 30 वर्ष का हमारा अनुभव यह कहने के लिए बाध्य करता है कि मीडिया के हथियार से देश को घायल करने का षडयंत्र कुछ लोगों व्दारा किया जा रहा है। यह विकास की ओर नहीं बल्कि विनाश की ओर लेकर जायेगा। हमने बीच में ही प्रश्नवाचक चिन्ह अंकित कर दिया। ट्रंप के उस वक्तव्य को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा था कि मोदी जी आप जैसा मीडिया यदि हमें मिला होता तो हम बहुत कुछ कर सकते थे। ट्रंप ने प्रशंसा नहीं बल्कि कटाक्ष किया था। पारदर्शिता पर निशान लगाया था। समाज की तस्वीर दिखाने वाले आइने पर लगीं बिन्दियों को उजागर किया था। और हम थे कि उसे प्रशंसा मानकर फूले नहीं समा रहे थे।
एक विव्दान ने अपनी पत्नी को चन्द्रमुखी कह कर उस पर कटाक्ष किया किन्तु पत्नी ने स्वयं को सुन्दरता का चरम मानकर उल्लास में कूदना ही शुरू कर दिया। एक बार फिर हमने उन्हे सीधे रास्ते पर लाने की गरज से राष्ट्रहित की ओर बढने के उपाय पूछना शुरू कर दिये। पूरी गम्भीरता के साथ उन्होंने कहा कि उपाय तो केवल, केवल एक ही है। स्वनियंत्रित होने की आशा में हम मीडिया को अनियंत्रित बनाते जा रहे है। उस पर अनुशासन की तलवार लटकना चाहिये। संदर्भ के लिए लोकसभा के चुनावों को ही ले लें। उसे दौरान तो कई चैनल्स के एंकर ही पार्टी विशेष के प्रवक्ता बनकर व्यवहार करते रहे। चुनाव को आंकडों और मीडिया की दम पर लडा गया।
चैनल्स, सोशल साइड्स और अखबारों के माध्यम से प्राप्त होने वाली दिशा ही लोगों को आगे बढने की राह सुझाती रही। रोटी, कपडा और मकान गौढ हो गये थे। कश्मीर, परिवार, स्वतंत्रता दिलाना, उसे कायम रखा, पूर्व की गलतियों का पोस्टमार्टम, पडोसी की हनक, धार्मिक भावनाओं जैसे कारकों को नारे की तरह बुलंद किया गया। इस दिशा में जिस ने जितना किया, उतना ही उसके खाते में वोटों का खजाना आया। बुलेट और तेजस का सुख तो तब उठा सकेगी आवाम, जब वो लावारिश पशुओं की भीड पार करके स्टेशन तक पहुंच पाये। आंकडों की बाजीगरी में मस्त लोग वातानुकूलित कमरों में बढते हुए देश को देख सकते हैं।
बिजली के अभाव में पंखा झलने वाली झोपडी में रहती मां, अपने मासूम को आज भी फटी हुई धोतियों की कथरी में सुलाती है। वहां न तो मीडिया के चैनल्स जाते हैं, न अखबारनबीस और न ही सोशल मीडिया का दम भरने वाली फौज। उनकी आवाज भरभरा उठी। आंखों में खारा पानी तैरने लगा। शब्द ठहर गये। मौन में ही हमें उनके अन्त: में उठने वाली सिसकियां सुनाई देने लगीं। हमने उनके कंधे पर हाथ रखा। पानी से भरा गिलास उनके आगे किया । उन्होंने एक ही सांस में पूरा गिलास खाली कर दिया। तभी नौकर ने कमरे में प्रवेश कर सेन्टर टेबिल पर चाय और स्वल्पाहार सजाना शुरू कर दिया। हमें अपने विचारों को संतुष्ट करने हेतु पर्याप्त सामग्री प्राप्त हो चुकी थी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। जय हिन्द।