-भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
क्या जमाना आ गया है दोस्तों...............। चाहे पी.एम. हो या फिर सी.एम., इनको महिलाओं के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। शक्ति तो नारी में ही होती है, तब नारी शक्ति की कथित हिफाजत के लिए योजना बनाकर धन खर्च करना बेमानी सा है। माई-बापू का जमाना गया, मॉम-डैड का इन्द्रधनुषीय काल चल रहा है। काली माई गईं, दुर्गा माई नौ दिन उपरान्त ठीक उसी तरह विसर्जित कर दी जाती हैं जैसे गणपति बप्पा मोरया। पहले के समय में जब हम कम पढ़े-लिखे थे तब ग्राम्य देवी-देवताओं से लेकर बड़े-बड़े स्त्रिी लिंग और पुल्लिंग देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना किया करते थे। समय बीतता गया। मानव में शिक्षा ग्रहण की प्रवृत्ति जागी। आज की बदली हुई सोच और आधुनिकता का आवरण पढ़ने-लिखने का ही परिणाम है।
जब हम कम पढ़े-लिखे थे तब अदृश्य देवी-देवताओं की मूर्तियों के सामने मत्था रगड़कर घर-परिवार और समाज के कल्याण की मन्नतें मांगते थे। अब जब पढ़-लिख लिये और आधुनिक हो गये, तब हमारी वह सोच मात्र अपने और अपनो तक ही सीमित होकर रह गई। इसी लिए वर्तमान में ऐसे पर्व-त्योहार सेलीब्रेट किये जाने लगे हैं, जिनका सम्बन्ध घनिष्ठ रिश्तों तक ही सीमित होता है। जैसे माता-पुत्र का पर्व गणेश चतुर्थी, भाई बहन का रक्षाबन्धन और पति-पत्नी का करवा चौथ। करवा चौथ पर्व का नाम आते ही अद्यतन घटित हुई घटनाओं का भी जिक्र करना लाजिमी हो जाता है, परन्तु उसके पहले यह बता दिया जाये कि यह पर्व जो हमारे समाज के वर्तमान पति-पत्नी के लिए स्टेटस सिम्बल बना हुआ है, इसके बारे में मान्यता है कि साल के 364 दिन कथित रूप से पति को प्रताड़ित करने वाली महिलाएँ एक दिन निर्जला व्रत रहकर पति के दीर्घायु होने की कामना करती हैं। चाँद का दीदार करती हैं, और छलनी की ओट से 364 दिन के कोल्हू के बैल की तरह रहने वाले पति का थोबड़ा देखती हैं, और तदुपरान्त व्रत तोड़कर जल ग्रहण करती हैं।
करवा चौथ को सेलीब्रेट करने में पति-पत्नी और परिवार के छोटे-छोटे बच्चों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। निर्जला व्रत रखने वाली महिलाएँ पूरे दिन कोई काम नहीं करती हैं बस अपने कोल्हू के बैल स्वरूप पति को पहले से हुक्म देकर मनवांछित वस्तुओं के उपहार पैक लाने की बाट जोहती हैं। करवा चौथ गिफ्ट का जिक्र होने पर हमें एक ऐसा संवाद याद आ गया जिसमें इस व्रत दिवस की पूर्व संध्या पर एक पति-पत्नी फैशनेबुल महंगे मॉल में जाकर खरीददारी कर रहे थे, इसी दौरान महिला को एक साड़ी पसन्द आ गई, जिसको लेने की जिद उसने ठान लिया। परन्तु पति के बटुए का वजन अपेक्षाकृत कम था उसने 12 हजार रूपए खर्चने में असमर्थता व्यक्त किया। दोनों में तकरार हुई फिर माल का साड़ी शो-रूम पति-पत्नी के युद्ध का मैदान बन गया। पहले पति ने पत्नी को एक थप्पड़ जड़ा, फिर क्या था पतिव्रता ने एक के बदले अपने शारीरिक बल सामर्थ्य के अनुसार चप्पलों से पति की जबदस्त धुनाई की। मामला पुलिस में गया। समझाने-बुझाने पर शान्त हुए दोनों पति-पत्नी घर गये।
करवा चौथ पर्व का नाम आते ही मुझे स्वयं के घर-परिवार और अगल-बगल घटित होने वाली घटनाएँ याद आने लगी। उदाहरण के तौर पर पुत्र कमाल की माता पूरे दिन व्यस्त रहीं। समझा जा रहा था कि वह मेरे स्वयं के दीर्घायु होने के लिए व्रत होंगी, और उसी की वजह से व्यस्त होंगी। बाद में पता चला कि वह कमाल की धर्मपत्नी जो करवा चौथ व्रत थी को धर्म ज्ञान बताते हुए व्रत अवसर पर विधि-विधान समझा रही थी। व्रत अवसर पर बनने वाला पकवान तैयार कर रही थी। बच्चे भी कौतूहल में थे। सभी इस इंतजार में थे कि कब यह व्रत समाप्त हो और उन्हें रात्रिकालीन भोजन, पकवान मिले। खैर! घर के अलावा एक अन्य घटना याद आ गई। तखत पर लेटे-लेटे फोन किया तो फोन कॉल रिसीवकर्ता ने बताया कि अंकल मेरी ड्यूटी चन्द्रोदय के समय दिखाई पड़ने वाली स्थिति के बारे में पता करने के लिए लगाई गई है। क्या करूँ मातृ स्वरूपा खूबसूरत भाभियों ने ऐसा हुक्म दिया है। मैं उसी का अनुपालन कर रहा हूँ।
क्या करूँ, ऐसा इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मेरी शादी अभी तक नहीं हुई है। सोचता हूँ कि भाभियाँ खुश रहेंगी तो अपनी जैसी लड़की को मेरी लुगाई बनाने में योगदान देंगी। अंकल करवा चौथ पर चाँद किस दिशा में निकलता है इसको लेकर भ्रम की स्थिति थी, चूँकि सुलेमान अंकल के मजहब में ईद का चाँद पश्चिम जानिब मुँह करके देखा जाता है लेकिन हमें बताया गया कि करवा चौथ में चाँद पूरब दिशा की तरफ से निकलता है। इतना कहकर मुँह लगे युवा भतीजे ने पूछा कि अंकल आप क्या कर रहे हैं। कहना पड़ा कि पूर्व की तरह मैं अपने तखत पर बिछे विस्तर पर लेटे-लेटे करवा चौथ और उसके पार्टीसिपेन्ट तथा ऑडियन्स के बारे में सोच रहा हूँ।
तात्पर्य यह कि हमारे बचपन से लेकर अब तक पूरे मानव समाज में हर तरह की तब्दीली आई है। माई- मॉम बन गई और बाबू- डैड हो गये, बहन-सिस हो गई और भाई-ब्रो हो गये। सभी तीज-त्योहार खासम-खास रिश्तों और उनके किरदारों तक ही सिमट कर रह गये। उम्र के इस पड़ाव पर जब मैं समाज का आंकलन करता हूँ तब पाता हूँ कि सब कुछ बदल गया है, और यह प्रक्रिया जारी है। यदि यह कहें कि समय जैसे-जैसे बीत रहा है हम हमारी मातृभाषा के अलावा फिरंगी भाषा और संस्कृति से संक्रमित हो रहे हैं तो गलत नहीं होगा। ऊपर वाला गवाह है कि काली माई, बरम बाबा, बाले बाबा, डिउहारे बाबा, शिवाला और हनुमान मन्दिर के अलावा और कुछ नहीं जानते थे। हम इन्हीं स्थानों पर जाकर अपने अभीष्टों की पूजा-अर्चना किया करते थे। लेकिन इधर कुछेक दशक से हमारी धार्मिक सोच और पूजा-अर्चना तथा अन्य सामाजिक कार्यक्रमों के रीति-रिवाज परिवर्तित होकर एकदम से पाश्चात्य तरीके के हो गये हैं।
यही सब सोच रहा था तभी मोबाइल फोन की घण्टी बजी न चाहते हुए फोन कॉल रिसीव किया। फोनकर्ता ने एकदम से औपचारिक होते हुए कहा कि जनाब हैप्पी करवा चौथ। मैंने अपने पुराने लंगोटिया यार सुलेमान फोनकर्ता के करवा चौथ विशिंग के प्रत्योत्तर में कहा कि यार कटे पर नमक न छिड़को। तुम्हें अच्छी तरह मालूम है कि हमारे घर-परिवार में मेरी की बिसात है। मेरे लिए अब ज्यादा दीर्घायु होना इससे बड़ी सजा और कुछ नहीं होगी। ऊपर वाला करे कि जिस तरह का माहौल करवा चौथ के अवसर पर कमाल की मम्मी ने बनाया है ऐसे ही बनाती रहें। कम से कम मैं दीर्घायु होने से बच जाऊँगा और दो दशक से पुराने तखत पर बेड राइडिंग से निजात पाऊँगा। इतना सुनते ही सुलेमान ने कहा कि यार कलम घसीट मुआफ करना मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का नही था। नई पीढ़ी को देखकर मुझ में भी अंग्रेज बनने की शौक जाग आई। इसीलिए फॉरमेल्टी के तौर पर मैंने तुमको करवा चौथ विश किया। मैंने कहा ओ.के. डियर। इतना कहकर सोचने लगा कि क्या जमाना आ गया है दोस्तो.............।
-भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी