-तनवीर जाफ़री
पिछले दिनों किसान आंदोलन के बीच पंजाब में स्थानीय निकायों के चुनाव संपन्न हुए। इसमें कांग्रेस पार्टी की अकाल्पनिक विजय इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी जितनी कि भारतीय जनता पार्टी की फ़ज़ीहत के साथ बुरी तरह हुई पराजय। फ़ज़ीहत इसलिए कि कई शहरों के विभिन्न वार्ड ऐसे थे जहां भाजपा को चुनाव लड़ने हेतु उम्मीदवार भी नसीब नहीं हुआ जबकि भाजपा के अधिकांश प्रत्याशी ऐसे थे जिन्हें चुनाव प्रचार के दौरान जनता के भारी रोष व विरोध का सामना करना पड़ा। सातों नगर निगमों में कांग्रेस को जीत हासिल हुई जबकि कई वार्डस में भाजपा प्रत्याशी अपना खाता भी नहीं खोल सके। नतीजतन लगभग पूरे राज्य से भाजपा का सूपड़ा साफ़ हो गया। हालांकि इन परिणामों को किसान आंदोलन से जोड़कर ज़रूर देखा जा रहा है परन्तु दरअसल यह शहरी चुनाव थे इसलिए इन्हें पूरी तरह किसान आंदोलन के रंग में रंगा चुनाव भी नहीं कहा जा सकता। हाँ इसे किसान आंदोलन के प्रति सरकार द्वारा अपनाये जा रहे ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैय्ये का परिणाम ज़रूर कहा जा सकता है।
पिछले दिनों संसद में जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोल रहे थे उस समय देश को विशेषकर किसानों को यह उम्मीद थी कि शायद प्रधानमंत्री के संबोधन में किसानों को अपनी समस्याओं से संबंधित कुछ सकारात्मक बातें सुनाई दें और सरकार व किसानों के बीच चला आ रहा गतिरोध समाप्त हो। परन्तु नतीजा बिल्कुल उल्टा रहा। प्रधानमंत्री ने संसद में न सिर्फ़ आंदोलनकारियों व आंदोलनकारी नेताओं को 'आन्दोलनजीवी' व 'परजीवी' जैसे अपमान जनक शब्दों से संबोधित किया बल्कि संसद में भी प्रधानमंत्री की चिंताएं टोल प्लाज़ा पर किसानों के धरने तथा पंजाब में कई जगह जिओ के मोबाईल टावर क्षति ग्रस्त करने को लेकर ज़रूर सुनी गईं। परन्तु साथ साथ सरकार यह बताने से भी हरगिज़ नहीं चूकती कि वह किसानों के हितों के लिए पूरी तरह समर्पित है। अन्नदाताओं व सरकार के बीच चल रही इस कशमकश तथा पंजाब के चुनाव परिणामों से इतर देश का 'घुटना टेक मीडिया' लोगों को आसाम व बंगाल के प्रधान मंत्री व गृह मंत्री से जुड़े समाचारों को दिखाता रहा। कुछ ही मीडिया चैनल ऐसे थे जिन्होंने पंजाब निकाय चुनाव के परिणामों व उनके कारणों पर कार्यक्रम पेश किये।
बहरहाल,एक तरफ़ किसानों के आंदोलन की धार दिन प्रतिदिन और तेज़ होती जा रही है तो दूसरी ओर सरकार इससे सबक़ लेने के बजाय डीज़ल,पेट्रोल व रसोई गैस के दामों में लगातार इज़ाफ़ा करती जा रही है। एक अनुमान के अनुसार 2014 में सत्ता में आने से लेकर अब तक केवल पेट्रोल डीज़ल पर टैक्स लगाकर जनता से 21 लाख पचास हज़ार करोड़ रूपये की भारी रक़म वसूल कर चुकी है। गत 12 दिनों से तो लगभग प्रतिदिन पेट्रोल डीज़ल के मूल्यों में वृद्धि का सिलसिला जारी है। सरकार जिस यू पी ए सरकार में होने वाली तेल मूल्य वृद्धि को लेकर सड़कों पर उतरती थी यदि उन आंकड़ों पर नज़र डालें तो जनता की जेबें ढीली करने की मंशा को लेकर सरकार की नीयत बिल्कुल साफ़ नज़र आती है। जब 2013 में यू पी ए सरकारके दौर में कच्चे तेल की क़ीमत 109 डॉलर प्रति बैरल थी उस समय देश में पेट्रोल की क़ीमत सामान्यतः 74रूपये प्रति लीटर थी तथा डीज़ल का मूल्य 45 रूपये प्रति लीटर था। परन्तु 2021 में जब कच्चा तेल लगभग 65 डॉलर प्रति बैरल है उस समय हमें पेट्रोल लगभग 90 /रूपये और डीज़ल 80 / प्रति लीटर के भाव से मिल रहा है। जबकि कुछ शहरों से तो प्रीमियम पेट्रोल की क़ीमत 100 /-रूपये प्रति लीटर को भी पार कर गयी है। तेल की क़ीमतों पर राष्ट्रव्यापी हंगामा खड़ा होते देख प्रधानमंत्री ने इस विषय पर टिपण्णी तो ज़रूर की है मगर वही अपेक्षित टिप्पणी, यानी इसके लिए भी पिछली सरकारों को दोषी ठहरा दिया। याद कीजिये जब कच्चे तेल की क़ीमत घटी थी तो प्रधानमंत्री ने स्वयं को 'नसीब वाला' प्रधानमंत्री बताया था और बढ़ी कीमतों के लिए कांग्रेस सरकार आज भी ज़िम्मेदार है?
इस समय सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सत्ता से क़दमताल मिलाकर चलने वाला मीडिया सरकार को किसानों व मूल्यवृद्धि जैसे जनसरोकार के विषयों पर सरकार को कटघरे में खड़ा करने के बजाय देश को यह बताने में लगा है कि किस तरह मोदी से डरकर चीनी सेना पेंगोंग झील में पीछे हट गई। चीन की नींदें मोदी ने हराम कर दीं,आदि आदि । परन्तु यही मीडिया सरकार से यह पूछने की हिम्मत नहीं कर रहा है कि चीनी सेना के भारतीय सीमा में घुसपैठ के आरोपों पर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में यह कहा था कि 'न वहां कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है,और न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्ज़े में है' फिर आख़िर चीनी सेना कहां से वापस जा रही है ? और जो पत्रकार सत्ता से इस तरह के सवाल कर रहा है उसे प्रताड़ित करने या किसी न किसी आरोप में फंसाने की कोशिशें हो रही हैं।
परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं कि देश में कुछ भी नहीं हो रहा है। देश में प्रधानमंत्री जी ने कांग्रेस नेता व पूर्व गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर की विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा बनवाकर देश का नाम रौशन किया है। स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी' नामक इस मूर्ति को बनाने में लगभग तीन हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च हुए हैं। बेशक इस मूर्ति के आसपास के गांव के लोगों का कहना है कि तीन हज़ार करोड़ रुपए राज्य के ग़रीबों या कल्याणकारी योजनाओं पर ख़र्च हो सकते थे। इसी तरह मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति की यात्राओं के लिये अमेरिका से दो नए विशेष विमान ख़रीदे हैं जिनका मूल्य लगभग 16 हज़ार करोड़ रुपये है। उड़ान के दौरान इस विमान पर प्रतिघंटा लगभग 1 करोड़ 30 लाख रुपये का ख़र्च आने का अनुमान है । पिछली सरकारों ने देश की आर्थिक स्थिति के मद्देनज़र ऐसे ख़र्चीले विमान की ज़रुरत नहीं महसूस की थी। परन्तु वर्तमान प्रधानमंत्री इसे देश की बड़ी ज़रुरत समझते हैं। इसी तरह दिल्ली में 21 एकड़ के क्षेत्र में सेन्ट्रल विस्टा नमक प्रोजेक्ट यानी नया संसद भवन बनाने पर मोदी सरकार लगभग 900 करोड़ रुपए की लागत से नए संसद भवन का निर्माण करवा रही है।
इसके अतिरक्त भी बहुत कुछ मोदी सरकार की देन है जैसे श्री राम मंदिर का शिलान्यास, कश्मीर से धारा 370 हटाना,तीन तलाक़ संबंधी क़ानून, एन आर सी व सी ए ए संबंद्धी जद्दोजेहद वग़ैरह। अब देश की जनता को तो सरकार की इन्हीं उपलब्धियों में संतोष तलाशना होगा। और यदि इनसब उपलब्धियों से आप गौरवान्वित न हों और अब भी भूख, मंहगाई और रोज़ी रोटी रोज़गार की चिंता सताएं तो सिवाय भजन के कोई चारा नहीं चुप चाप सिर्फ़- 'सीता राम, सीता राम, सीताराम कहिय। जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये।।'