यह कहानी जान पहचान वाले एक सम्पादक ने मुझसे कही थी । वह अब इस दुनिया मे नहीं हैं। उनकी लघु कहानी की प्रासंगिकता आज भी महसूस करता हूँ।
रेगिस्तान की रेत गर्मी के महीने में तप रही थी।ऊपर से सूरज की प्रचंड किरणे आग बरसा रही थी।एक बैल गाड़ी रेत में चल रही थी। उसी के नीचे सूरज की तपती किरणों की गर्मी से बचने के लिए एक कुत्ता भी चल रहा था। गाड़ी की छांव में उसे गर्मी से राहत मिल रही थी।
कुछ दूर चलने के उपरांत कुत्ते ने सोचना शुरू किया। उसके दिमाग मे यह बात आई कि बैल गाड़ी का पूरा भार उसके ऊपर है, इसीलिए बड़े आराम से बैल गाड़ी तपती रेत में चल रही है।इसी गलतफहमी में कुत्ते ने अपने आप को बैल गाड़ी के नीचे से बाहर कर लिया। और वह प्रचंड धूप और तपती रेत पर बिना किसी छांव के सहारे चलने लगा। बैल गाड़ी अपनी गति से उस कुत्ते से कई मील दूर चली गयी। फिर क्या था कुत्ता नीचे और ऊपर की तपिश से परेशान हो गया। राहत पाने के लिए वह रेत पर दौड़ने लगा।
कुत्ता दौड़ता रहा लेकिन गर्मी से निजात नही मिल पाई। अंत मे कुत्ता हांफने लगा, उसके शरीर का पानी सूख गया। रेगिस्तान में पानी नही मिला। वह अपनी गलती पर पश्चाताप करने लगा। परन्तु तब तक काफी देर हो चुकी थी। कुत्ता रेगिस्तान की गर्म रेत पर तड़प तड़प कर मर गया।उधर बैल गाड़ी अपने गंतव्य को पहुच चुकी थी।