कृषि कानूनों की वापसी आखिर किसकी जीत और किसकी हार

कृषि कानूनों की वापसी आखिर किसकी जीत और किसकी हार


नई दिल्ली।
वर्ष 1975 में एक फिल्म आई थी जिसका नाम था दीवार उस फिल्म का एक मशहूर डायलॉग था आज खुश तो बहुत होगे तुम हमारे देश में भी एक वर्ग ऐसा है जो आज खुश तो बहुत होगा क्योंकि उसने हमारे देश की राजनीति को बैलगाड़ी के युग में धकेलने की कोशिश की है।

किसकी जीत और किसकी हार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 418 दिनों के बाद देश की संसद द्वारा पास किए गए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया बहुत सारे लोग इसे मोदी का मास्टर स्ट्रोक कह रहे हैं बहुत सारे लोग इसे किसानों की जीत कह रहे हैंए विपक्षी दल इसे अपनी जीत मान रहे हैं खालिस्तानी इसे अपनी जीत मान रहे हैं और देश का टुकड़े टुकड़े गैंग भी आज तालियां बजा रहा है तो आखिर ये किसकी जीत है और किसकी हार है।

इसे समझने के लिए आज सबसे पहले आप 40 वर्ष पुरानी एक तस्वीर के बारे में जानिएण् तस्वीर वर्ष 1981 की है 40 वर्षों में तो चंद्रमा और मंगल तक पहुंच गया है लेकिन देश की राजनीति को आज एक बार फिर बैलगाड़ी वाले युग में धकेलने की कोशिश की गई है

कृषि सुधार स्वीकार नहीं

इसी के साथ कृषि सुधार की हार हो गई है क्योंकि ये सिर्फ कानून नहीं थे बल्कि आर्थिक सुधार वाली राजनीति की मिसाल थेण् लेकिन जिस देश की पूरी राजनीति दरिदत्राए अशिक्षाए भ्रष्टाचारए बेरोजगारीए जात.पात और धर्म पर आधारित हो उसे समृद्धि वाली राजनीति भला कैसे पच सकती हैघ् हमारा देश कृषि सुधारों और आर्थिक सुधारों को स्वीकार ही नहीं कर पाता ।

साल 1991 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की थीए आज हम भारत की आर्थिक प्रगति पर गर्व करते हैं लेकिन तब भी देश के एक वर्ग को वो फैसला पचा नहीं थाए जब 1996 में दोबारा चुनाव हुए तो नरसिम्हा राव सत्ता से बाहर हो गए यानी वो चुनाव हार गएण् आज भी स्थिति बदली नहीं हैए कहने को तो हम बुलेट ट्रेन और इलैक्ट्रिक व्हीकल के युग में पहुंच चुके हैं लेकिन हमारी राजनीति आज भी बैलगाड़ी पर ही है जो समृद्धि के पहियों पर नहीं चलती बल्कि इसे दरिद्रता के चाबुक से हांका जा जाता है

सड़क छाप राजनीति की जीत

ऐसा लगता है कि आज बैलगाड़ी वाली राजनीति के साथ.साथ इन तत्वों की भी जीत हो गई है सड़क छाप राजनीति की जीत हो गई है और जो लोग भारत के समाज का ही भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना जानते हैं उनकी भी जीत हो गई है और सुधार की राजनीति हार गई है

प्रधानमंत्री मोदी ने  1 साल 1 महीना और 23 दिनों के बाद तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का ऐलान कर दिया ये कानून 27 सितम्बर 2020 को लागू हुए थे और इसके तहत कृषि क्षेत्र में अब तक के सबसे बड़े सुधार किए गए थे लेकिन किसान आन्दोलन की वजह से आज प्रधानमंत्री मोदी ने ये ऐलान किया कि सरकार 29 नवम्बर से शुरू हो रहे संसद के शीत सत्र में इन कानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया शुरू कर देगी यानी अब से कुछ दिन के बाद ये कानून भारत का इतिहास बन जाएंगे और ये इतिहास भारत को कहां ले जाएगा आज यही समझने का दिन है


पीएम मोदी ने कही दो बड़ी बातें

आज प्रधानमंत्री मोदी ने दो बड़ी बातें कहींण् पहली ये कि वो देश के लोगों से क्षमा मांगते हैंण् सच्चे मन से और पवित्र ह्रदय से कहना चाहते हैं कि उनकी तपस्या में ही कोई कमी रही होगीए जिसके कारण दीये के प्रकाश जैसा सत्य वो कुछ किसानों को समझा नहीं पाएण्


दूसरी बात उन्होंने ये कही कि इन कृषि कानूनों का विरोध किसानों का एक वर्ग ही कर रहा थाण् लेकिन सरकार के लिए ये वर्ग भी महत्वपूर्ण था इसलिए कृषि कानूनों के जिन प्रावधानों को लेकर उन्हें ऐतराज थाए सरकार उन्हें बदलने के लिए तैयार थीण् इन कानूनों को दो साल तक होल्ड पर रखने का भी प्रस्ताव दिया गया थाण् लेकिन किसानों ने इसे भी स्वीकार नहीं कियाण्


कानून रद्द होने का क्या असरघ्

इन कानूनों के रद्द होने से तीन चीजे होंगीण् पहला मौजूदा मंडी व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं होगाण् यानी मंडियां भी चलती रहेंगीए बिचौलिए भी किसानों से पैसा कमाते रहेंगे और किसानों के साथ मनमानी की दशकों पुरानी व्यवस्था का भी कुछ नहीं बिगड़ेगाण् दूसरा भारत में ब्वदजतंबज थ्ंतउपदह की व्यवस्था पहले की तरह जटिल बनी रहेगीण्


तीसरा खाद्य तेलए दालेंए प्याजए आलू और अनाज को आवश्यक वस्तु की सूची में ही रखा जाएगाण् यानी जमाखोरी पर प्रतिबंध जारी रहेगाण् जब इन वस्तुओं का ज्यादा उत्पादन होता है तो ये चीजें सरकारी गोदामों में रखे.रखे सड़ जाती हैंण् और इन्हें खरीदार नहीं मिलतेण् सरकार ने यही सोच कर इनसे प्रतिबंध हटाया थाण् लेकिन ये व्यवस्था अब पहले की तरह जारी रहेगीण्

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