शिबेन रैना कहिन..........

शिबेन रैना कहिन..........

कश्मीरी पंडितों को अपने वतन से बेघर हुए अब लगभग इक्कतीस वर्ष हो चले हैं। 31 वर्ष ! यानी तीन दशक से ऊपर!! बच्चे जवान हो गएएजवान बुजुर्ग और बुजुर्गवार या तो हैं या फिर श्त्राहि.त्राहिश् करते देवलोक सिधार गए।कैसी दुःखदध्त्रासद स्थिति है कि नयी पीढ़ी के किशोरों.युवाओं को यह नहीं मालूम कि उनका जन्म कहाँ हुआ थाघ्उनकी मातृभूमि कौनसी है घ्बाप.दादाओं से उन्होंने जरूर सुना है कि मूलतः वे कश्मीरी हैं मगर 1990 में वे बेघर हुए थे।    

सरकारें आईं और गईं मगर किसी भी सरकार ने उनको वापस घाटी में बसाने की मन से कोशिश नहीं की।आश्वासन अथवा कार्ययोजनाएं जरूर घोषित की गईं। सरकारें जांच.आयोग तक गठित नहीं कर पाईं ताकि यह बात सामने आ सके कि इस देशप्रेमी समुदाय पर जो अनाचार हुएएजो नृशंस हत्याएं हुईं या फिर जो जघन्य अपराध किए गएए उनके जिम्मेदार कौन हैंघ्

दर.दर भटकने को मजबूर इस कौम ने अपनी राह खुद बनायी और खुद अपनी मंजिल तय की।तीस वर्षों के निर्वासन ने इस पढ़ी.लिखी कौम को बहुत.कुछ सिखाया है। स्वावलम्बीएमजबूत और व्यवहार.कुशल बनाया है।जो जहां भी हैएअपनी मेहनत और मिलनसारिता से उसने अपने लिए एक जगह बनायी है। बसएखेद इस बात का है कि एक ही जगह पर केंद्रित न होकर यह छितराई कौम अपनी सांस्कृतिक.धरोहर शनैरू.शनैरू खोती जा रही है। समय का एक पड़ाव ऐसा भी आएगा जब विस्थापन की पीड़ा से आक्रान्तध्बदहाल यह जाति धीरे.धीरे अपनी पहचान और अस्मिता खो देगी। नामों.उपनामों को छोड़ इस जाति की अपनी कोई पहचान बाकी नहीं रहेगी।

हर सरकार का ध्यान अपने वोटों पर रहता है। उसी के आधार पर वह प्राथमिकता से कार्ययोजनाओं पर अमल करती है और बड़े.बड़े निर्णय लेती है। पंडित.समुदाय उसका वोट.बैंक नहीं अपितु वोट पैदा करने का असरदार माध्यम है।अतः तवज्जो देने लायक भी नहीं है


(Posted By:- Kapil Dev Vishwakarma, Mob:- 9519364890)

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