रेल अंडर पास - राहत या मुसीबत

रेल अंडर पास - राहत या मुसीबत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत दिनों पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी से असम के गुवाहाटी के बीच चलने वाली एक और नई वंदे भारत ट्रेन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने भारतीय रेल की अनेक उपलब्धियों का ज़िक्र किया।  प्रधानमंत्री  ने कहा कि 'आज भारत में हो रहे इंफ़्रा स्ट्रक्चर के काम की पूरी दुनिया में बहुत चर्चा हो रही है. क्योंकि यही इंफ़्रा स्ट्रक्चर तो जीवन आसान बनाता है। यही इंफ़्रा स्ट्रक्चर तो रोज़गार के अवसर बनाता है। यही इंफ़्रा स्ट्रक्चर तेज़ विकास का आधार है। यही इंफ़्रा स्ट्रक्चर ग़रीब, दलित, पिछड़े, आदिवासी, ऐसे हर वंचित को सशक्त करता है' वग़ैरह वग़ैरह। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि  वर्ष  2014 से पहले पूर्वोत्तर के लिए रेलवे बजट के नाम पर 2500 करोड़ दिया जाता था लेकिन अब इसे बढ़ाकर 10 हज़ार करोड़ कर दिया गया है. जो कि पहले की अपेक्षा 4 गुना अधिक है। 



- निर्मल रानी

                                     

जिस समय प्रधानमंत्री जी रेल विकास के बारे में यह दावे कर रहे थे कि 'इंफ़्रा स्ट्रक्चर तो जीवन आसान बनाता है' ठीक उसी समय देश के अनेक हिस्सों में बेमौसम की बारिश हो रही थी और देश के सैकड़ों रेल अंडर पास पानी भर जाने की वजह से तालाब बन चुके थे। और यही रेल इंफ़्रा स्ट्रक्चर इंसान का जीवन आसान बनाने के बजाये लोगों के जीवन को नर्क बना रहे थे। ज़रा कल्पना कीजिये कि जिन रेलमार्गों से होकर वंदेभारत जैसी आधुनिक ट्रेन्स तीव्र गति से गुज़रते हुये भारतीय रेल के विकास में नया अध्याय जोड़ रही हों उन्हीं रेल मार्ग के नीचे जनसुविधाओं के लिए बनाया गया रेल अंडर पास तालाब या स्वीमिंग पूल बनकर आम लोगों के जीवन में दुश्वारियां पैदा कर रहा हो, यह आख़िर कैसा रेल विकास है ? पूरे देश में हज़ारों की संख्या में रेल अंडर पास बनाये जा चुके हैं और सैकड़ों अभी भी निर्माणाधीन हैं। इनमें कई अंडर पास बनाने में तो 6-7 वर्ष तक का लंबा समय भी लगा है। रेल विभाग द्वारा इस तरह का अंडर पास बनाने का मक़सद यही है कि एक तो फ़्लाई ओवर की तुलना में यह सस्ता निर्माण है। दूसरे अंडर पास बन जाने से रेल फाटक और गेट मैन कर्मचारी की तैनाती और कई तकनीकी झंझटों से मुक्ति मिल जाती है। इस लिहाज़ से अंडर पास का निर्माण बहरहाल बेहतर ही है। 

                                

परन्तु वास्तविकता तो यही है कि आज देश के अधिकांश रेल अंडरपास लोगों के लिये बड़ी समस्या बन चुके हैं। उत्तर प्रदेश के नेपाल सीमा के निकट महराजगंज ज़िले के अंतर्गत नौतनवां क्षेत्र के बरवांकला गाँव के पास बना रेल अंडरपास हो या हरियाणा के रेवाड़ी-फुलेरा रेलमार्ग पर एलसी नंबर 26 पर बना अंडरपास,हरियाणा के उचाना कलां में मानव रहित फाटक की जगह बना अंडरपास या फिर राजस्थान में बीकानेर दिल्ली नेशनल हाईवे संख्या 11 पर बना रेलवे अंडरपास हो। हरियाणा के दादरी शहर के गांधीनगर क्षेत्र में बंद फाटक पर बना रेलवे अंडरपास हो या बहादुरगढ़ (झज्जर) शहर का रेलवे अंडरपास या फिर हरियाणा के ही फ़रीदाबाद जैसे व्यस्त शहर में बना एनएचपीसी रेलवे अंडरपास। राजस्थान में सीकर ज़िले के फतेहपुर का मंडावा रोड स्थित रेलवे अंडर पास  हो या फिर मध्य प्रदेश के सौंसर नगर के रेलवे चौकी स्थित निर्मित रेलवे अंडरपास। उपरोक्त जैसे सैकड़ों उदाहरण दिये जा सकते हैं जो भारी बारिश में तो पानी से लबालब रहते ही हैं बल्कि इनमें से अनेक तो आजकल मानसून से पूर्व हो रही बेमौसमी बारिश में भी स्विमिंग पूल अथवा तालाब होने का दृश्य पेश कर रहे हैं।

                              

आश्चर्य की बात तो यह है कि कुछ ऐसे अंडर पास भी बने हैं जो बिना बारिश के भी भर जाते हैं। ऐसा ही एक अजूबा रेल अंडर पास अंबाला शहर रेलवे स्टेशन के बिल्कुल साथ लगता हुआ है जो शहर के अत्यंत व्यस्त मार्ग पर है। शहरवासियों के लिए 'नासूर ' बन चुके इस अंडर पास का उद्घाटन स्थानीय भाजपा विधायक ने अपने जन्म दिन 25 अक्टूबर 2022 के अवसर पर किया था। उद्घाटन के दिन से ही यह रेल अंडर पास जिसे बनने में लगभग 6 वर्ष का समय लगा,आम लोगों के लिये परेशानी का सबब बना रहता है। दरअसल इस रेल अंडर पास के नीचे से ही पानी तेज़ी से रिस्ता रहता है। और अब तक कई बार  इस अंडर पास को मरम्मत के लिये बंद भी किया जा चुका है। यहाँ तक कि एक बार भाखड़ा नंगल डैम की लीकेज बंद करने के विशेषज्ञों की भी एक टीम ने क़रीब 15 दिनों तक इस मार्ग से यातायात पूरी तरह बंद कर इसकी मरम्मत भी की। परन्तु कुछ समय बाद ज़मीन के नीचे से तेज़ जल रिसाव फिर शुरू हो गया। 

                               

इसतरह के रेल अंडर पास में होने वाले जलभराव जहां अभियंताओं की सूझ बूझ पर सवाल खड़ा करते हैं वहीं इस तरह के ग़ैर ज़िम्मेदाराना निर्माण में भ्रष्टाचार की भी बू आती है। कई अंडरपास में रुका हुआ पानी बाहर करने के लिये शक्तिशाली मोटर भी लगाई गयी हैं परन्तु उसके बावजूद पानी के भरने का क्या अर्थ है ? कई बार इनमें स्कूल की बसें फंसने की ख़बर आती है तो कभी कारें डूब जाती हैं। रास्ते बंद होने से जनता को तकलीफ़ अलग होती है। कितना बड़ा दुर्भाग्य है इस देश की जनता का कि उसी के ख़ून पसीने की गाढ़ी कमाई से दिये गये टैक्स से बनाये जाने वाले अंडर पास उसी जनता के लिये भीषण समस्या बने हुये हैं जबकि उनके ऊपर से गुज़रने वाली वंदे भारत जैसी ट्रेन्स देश का गौरव बढ़ा रही है ?     

                               

कुछ दिन पहले हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि ऐसे प्रबंध किए जाएं कि रेलवे लाइनों के नीचे से गुज़रने वाले अंडर-पास में बारिश का पानी न भरने  पाए। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि जहां आवश्यकता है वहां अंडर-पास के ऊपर शैड आदि लगाने की व्यवस्था की जाए ताकि बारिश का पानी न भर पाए। परन्तु एक तो यह समस्या केवल हरियाणा की नहीं बल्कि राष्ट्रव्यापी है। दूसरे यह कि अंबाला शहर जैसे अंडर-पास का क्या इलाज है जहाँ भाखड़ा नंगल डैम की टीम भी ज़मीन के नीचे से होने वाले जल रिसाव को नहीं रोक सकी ?  इस तरह के सभी रेल अंडर पास का मुकम्मल इलाज किया जाना चाहिये अन्यथा जलभराव वाले सभी अंडर पास आम लोगों के लिये राहत नहीं बल्कि मुसीबत साबित हो रहे हैं। 





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