जिंदगी की जंग हार गईं विमला देवी, आघातों ने कर दिया था जीवन कठोर

जिंदगी की जंग हार गईं विमला देवी, आघातों ने कर दिया था जीवन कठोर




जौनपुर: जिंदगी वही नहीं, जो आँखों से दिखती है, जिंदगी वह है, जो दिल से महसूस होती है।’’ और विमला देवी का जीवन ठीक ऐसा ही था, जो अपनी एक अद्भुत और कड़वी सच्चाई के साथ गहरे दर्द और साहस की गाथा लिख गया। 


जफराबाद थाना क्षेत्र के सुल्तानपुर निवासी वरिष्ठ पत्रकार शंभू नाथ सिंह की 80 वर्षीय चाची विमला देवी ने गुरुवार की रात हृदयाघात के चलते इस संसार को अलविदा कहा, लेकिन उनका संघर्ष, उनका जीना और उनके अदृश्य बलिदान अब भी हमारे बीच जिंदा हैं। 


यह कहानी सिर्फ एक वृद्ध महिला की नहीं है, बल्कि एक ऐसी माँ की है, जिसने जीवन की हर मुश्किल से टक्कर ली, हर आघात को सहा, फिर भी कभी न रुकी। जब उनके जीवन में गहरी छांव डालने वाले उनके पति हरदेव सिंह (जो मास्टर साहेब के नाम से पहचाने जाते थे) और उनके एकलौते बेटे यशनाथ सिंह, जो एक कुशल कंप्यूटर इंजीनियर थे, इस संसार से चले गए, तब विमला देवी का जीवन मानो जैसे एक अधूरी किताब बनकर रह गया। एक और जंग में, जब उनकी उम्र और बीमारी ने उन्हें घेर लिया, तब भी वो अपने दुखों से बाहर निकलने के रास्ते तलाशती रहीं।   


विमला देवी, जो वर्षों तक दवाओं की जंजीरों में बंधी रहीं, कभी जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को महसूस करतीं, तो कभी अपनी बीमारियों और अकेलेपन के साए में डूब जातीं। लेकिन उनका जज़्बा कभी नहीं थमा। वे जो हार चुकी थीं, फिर भी हर रोज़ खुद को फिर से खड़ा करने की कोशिश करतीं। 


गुरुवार की शाम, जब हृदयाघात ने उन्हें चुपचाप अपने आगोश में लिया, तो उनकी आखिरी सांसें उन सैकड़ों संघर्षों की गवाही दे गईं, जो उन्होंने बिना किसी शिकायत के हर पल जी। शुक्रवार को उनका अंतिम संस्कार जौनपुर के गोमती तट स्थित रामघाट पर हुआ, जहां गोरख नाथ सिंह ने उन्हें मुखाग्नि दी। 


विमला देवी की यात्रा अब ख़त्म हो गई, लेकिन उनका जीवन कभी ख़त्म नहीं होगा। चार विवाहित बेटियाँ और उनका परिवार अब उस यादों के सहारे अपनी राह तलाशेंगे, जो उन्होंने उनके लिए छोड़ी। वे केवल शारीरिक रूप से हमें छोड़ गईं, लेकिन उनका साहस, उनकी ताकत और उनका संघर्ष अब हमारी आत्मा का हिस्सा बन चुका है।  

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