‘शक’ करना छोड़ दें मजे में रहेंगे

‘शक’ करना छोड़ दें मजे में रहेंगे

-डॉ0 भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी/ शक नामक बीमारी जो स्त्री, पुरूषों में प्रायः होती है लाइलाज है। ऊपर वाला न करे कि यह बीमारी किसी में हो। शक यानि संदेह जिसे आंग्ल भाषा में डाउट भीं कहते हैं एक ऐसी बीमारी है जो स्त्री-पुरूष के रिश्तों में दरार डालकर दोनों का जीवन दुःखद बनाती है। इसी शक पर पिछले दिनों मेरी एक लम्बी चौड़ी बहस पुराने मित्र से हुई। शक की बात चली तो उन्होंने कहा कि यह झूठ बोलने की वजह से होता है। झूठ तो सभीं बोलते हैं तो क्या सभीं पर शक किया जाए, इस पर वह बोले नहीं डियर व्यापार में झूठ बोला जाता है। यदि सत्यवादी बन गए तो एक दिन कटोरा लेकर भीख मांगोगे। समय और परिस्थितियांे के अनुसार ही झूठ-सच बोला जाता है। इस समय शक की बीमारी ने हर तरह की घातक बीमारियों को भीं काफी पीछे छोड़ दिया है। वो क्या है पति अपनी पत्नी पर, पत्नी अपने पति पर प्रेमी अपनी प्रेमिका और प्रेमिका अपने प्रेमी पर ‘शक’ करने लगे हैं। यार यह कोई नई बीमारी नहीं है सदियों से चलती आई रही है, और इन फ्यूचर चलती रहेगी। देखो भाई जी लोग एक दूसरे को बेहद प्यार करते हैं वे नहीं चाहते कि उनके प्यार के बीच कोई दूसरा आए।
‘शक’ की पृष्ठभूमि पर अनेकों फिल्मों, उपन्यासों की रचनाएँ भीं की जा चुकी हैं। वैसे तुमसे कुछ भीं अनजान नहीं है, ऐसा करो विषय वस्तु पर कुछ भी बोलने का ‘मूड’ नहीं हो रहा है। यार शक ‘डाउट’ संदेह आदि सब गुड़ गोबर कर देता है। इसका इलाज भीं नहीं है। कई लोग अपसेट हो चुके हैं। हमने देखा है कि शक्की मिजाज के कई स्वथ्य लोग और नवजवान डिप्रेशन का शिकार होकर अच्छा खासा जीवन कष्टकारी बना डाला है। इन बेचारे कालीदासों को कौन कहे कि ‘शक’ करने की आदत को छोड़ दो मजे में रहोगे। कभीं-कभीं तो दो प्यार करने वालों ने मजाक-मजाक में कुछ ऐसा कृत्य प्रदर्शित किया है जिससे ‘शक’ जैसी बीमारी ने उन पर अपना असर दिखाया। कई उदाहरण है- जब कोई प्रेमी किसी अन्य युवती/महिला के साथ हंसे बोले बातें करें तो जाहिर सी बात है कि उसको दिलो जान से चाहने वाली असली प्रेमिका ‘शक’ करने लगेगी और गुस्से में रूठ जाएगी। इसके अलावा वह भीं मात्र प्रतिशोध लेने के लिए पर पुरूष से मिलकर ऐसे हाव-भाव का प्रदर्शन करेगी जैसे वह अपने प्रियतम के साथ प्यार करने का नाटक कर रही हो और उसकी ‘फ्लर्ट’ करने की यह आदत है। बस दोनों के प्यार में दराद पड़ जाएगी। इस खतरनाक दिखावे के खेल से जिन्दगी तबाह हो जाती है।
तात्पर्य यह कि मजाक में भीं सच्चे प्रेमी-प्रेमियों को ऐसे कृत्य नहीं करने चाहिए जो आत्मघाती सिद्ध हो। रिश्ते वह भीं स्त्री-पुरूष के बहुत ही नाजुक होते हैं, इनको परखने के लिए मन की आँखंे और दिमाग चाहिए। ‘शक’ की बीमारी से दूर रहकर ही प्रेम, प्यार का रिश्ता मजबूर रहेगा वर्ना.....। बस अब तो आप का प्रवचन समाप्त वह बोले नहीं डियर कलमघसीट यह साधारण बात नहीं है। तुम सीरियसली नहीं ले रहे हो, मेरी मानों और कृपा कर मेरी बात को ‘प्रवचन’ मत कहो। बी सीरियस, एण्ड टेक इट सीरियसली। वर्ना कहीं तुम्हारे (तुम-दोनों के) बीच ‘शक’ की बीमारी आ गई तब तो सब खेल चौपट, जिन्दगी तबाह, बरबाद।
डियर उपदेशक ऐसा नहीं है कि हमारे बीच ‘शक’ है। हम लोग रूठने-मनाने के लिए ड्रामा किया करते हैं और सच्चे प्यार को कसौटी पर कसकर उसकी मजबूती को देखते हैं। क्या समझे-यदि नहीं समझे तो हम क्या करें। तुम अपना काम कर रहे हो और हम हमारा। करते रहो, यही तो जिन्दगी है। बन्धु मगर यह मत सोचों कि हमारे प्यार के बीच किसी प्रकार के ‘शक’ की गुंजाइश है। बस ठण्ड रखो मजे करो हमे हमारे हाल पर रहने दो। 
-डॉ0  भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

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