कांग्रेस में नए अध्यक्ष के चुनाव की सुगबुगाहट के साथ ही अशोक गहलोत ने कई बार कहा था कि अध्यक्ष राहुल गांधी को ही बनना चाहिए। गहलोत का साफ इशारा समझने में आलाकमान ने भूल कर दी।
कांग्रेस के भीतर अध्यक्ष पद को लेकर मचा घमासान चरम पर पहुंच गया है। लंबी ऊपाहोप के बाद राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने आज साफ कर दिया कि वह अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे। गहलोत ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद ये भी कहा कि उनसे सीएम बने रहने का फैसला सोनिया गांधी लेंगी। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि पिछले एक महीने से किस तरह ये पूरा सियासी घटनाक्रम शुरू हुआ और अंत में गहलोत के इनकार ने कैसे आलाकमान को चौंकाया।
कांग्रेस में नए अध्यक्ष के चुनाव की सुगबुगाहट के साथ ही अशोक गहलोत ने कई बार कहा था कि अध्यक्ष राहुल गांधी को ही बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं बने तो पार्टी में निराशा आएगी और कई लोग घर बैठ जाएंगे। गहलोत का इशारा समझने में आलाकमान ने भूल कर दी। उनकी आनाकानी के बावजूद उनका नाम तेजी से सामने आया और कहा जाने लगा कि उनका कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय है। कहा जा रहा था कि 24 सितंबर को प्रक्रिया शुरू होने के बाद अशोक गहलोत अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कर देंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अशोक गहलोत के पैर जयपुर में ही जमे रहे।
20 सितंबर: कांग्रेस विधायकों की बैठक
गहलोत ने 20 सितंबर से ही सियासी बिसात पर चालें चलना शुरू कर दिया था। इस रात उन्होंने अपने सरकारी आवास पर कांग्रेस विधायकों की बैठक बुलाई। बैठक में उन्होंने विधायकों से कहा कि यदि वह पार्टी अध्यक्ष के पद के लिए नामांकन दाखिल करने का फैसला करते हैं तो उन्हें दिल्ली बुलाया जाएगा। लेकिन वह पहले कोच्चि जाएंगे और कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व कर रहे राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए मनाने की कोशिश करेंगे।
22 सितंबर: राहुल का अध्यक्ष बनने से इनकार
उधर, 22 सितंबर को राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान प्रेस कांफ्रेंस में साफ कर दिया कि वह ये जिम्मेदारी नहीं लेंगे। साथ ही इशारा कर दिया कि कांग्रेस में एक व्यक्ति एक पद का नियम जारी रहेगा। इसके साथ ही तय हो गया कि गहलोत ही अब नए अध्यक्ष बनेंगे और राजस्थान में उनकी जगह कोई और लेगा। राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा जोर पकड़ने लगी और हाईकमान ने 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक बुलाई। सोनिया गांधी ने इस बैठक के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और राज्य के प्रभारी महासचिव अजय माकन को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा।
हाईकमान का रुख भांपकर अशोक गहलोत ने अपने आवास पर शाम को बैठक बुलाई। बैठक में गहलोत समर्थक विधायकों ने साफ कह दिया कि वे 102 विधायकों के बाहर किसी और को सीएम नहीं बनने देंगे। उनका इशारा सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की ओर था। गहलोत पायलट की जगह अपने किसी विश्वासपात्र को ही यह पद सौंपने के पक्ष में थे। स्पीकर सीपी जोशी सबसे बड़े दावेदार थे। विधायकों में गहलोत समर्थकों की संख्या ज्यादा है। ऐसे में पायलट का दावा कमजोर ही था और उन्हें यह पद सिर्फ आलाकमान के निर्देश पर ही मिल सकता था।
25 सितंबर: माकन और खड़गे बने पर्यवेक्षक
नए नेता के चुनाव के लिए सोनिया गांधी ने 25 सितंबर को वरिष्ठ नेता अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे को पर्यवेक्षक बनाकर राजस्थान भेजा। शाम को ही कांग्रेस विधायक दल की बैठक होनी थी। इसमें दोनों पर्यवेक्षक एक-एक करके सारे विधायकों से मिलने वाले थे। लेकिन बैठक से पहले अशोक गहलोत खेमे के विधायकों ने बागी रूख अख्तियार कर लिया। विधायक दल की बैठक में पहुंचे की बजाय गहलोत समर्थक विधायक मंत्री शांति धारीवाल के घर पहुंच गए। इसके बाद करीब 92 विधायकों ने स्पीकार से मुलाकात कर उन्हें अपना इस्तीफा सौंप दिया।
26 सितंबर: वापस दिल्ली लौटे माकन-खड़गे
विधायकों के रुख के चलते माकन और खड़गे को बिना बैठक के ही अगले दिन 26 सितंबर को वापस दिल्ली लौटना पड़ा। दिल्ली पहुंचकर माकन और खड़गे ने सोनिया गांधी को पूरी स्थिति के बारे में जानकारी दी। पूरे घटनाक्रम की जानकारी मिलने पर वह नाराज हो गईं। अशोक गहलोत का रुख उनके लिए किसी झटके से कम नहीं था। सोनिया गांधी ने माकन और खड़गे से इस पूरे मामले की विस्तृत लिखित रिपोर्ट मांगी। रिपोर्ट में गहलोत को तो क्लीन चिट दे दी गई, लेकिन उनके कुछ करीबी विधायकों को जिम्मेदार ठहराया गया।
27 सितंबर: तीन विधायकों को नोटिस
27 सितंबर को कांग्रेस आलाकमान ने मंत्री शांति धारीवाल, धर्मेंद्र राठौड़ और संचेतक महेश जोशी को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। इसमें
गहलोत को क्लीन चिट दे दी गई। नौ पन्नों की अपनी रिपोर्ट में पर्यवेक्षकों ने कहा कि रविवार को राजस्थान में जो राजनीतिक घटनाक्रम हुआ, उसमें अशोक गहलोत की कोई भूमिका नहीं थी। कई विधायक खुद ही सीपी जोशी के पास गए थे और वहां जाकर अपना इस्तीफा दिया था। इतना ही नहीं शांति धारीवाल के घर हुई विधायकों की मीटिंग में भी गहलोत की कोई भूमिका नहीं थी। इस रिपोर्ट में बैठक बुलाने वाले नेताओं पर कार्रवाई की सिफारिश की गई।
28 सितंबर: सोनिया से मिलने दिल्ली पहुंचे गहलोत
मामला बिगड़ता देख गहलोत ने 28 सितंबर को दिल्ली जाकर सोनिया गांधी से मुलाकात की योजना बनाई। लेकिन दिनभर इसे लेकर सस्पेंस बना रहा। उनका दिल्ली बदलने का समय लगातार बदलता गया। पार्टी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करने को लेकर अनिश्चितताओं के बीच सोनिया से मिलने गहलोत बुधवार रात 10.40 बजे विशेष विमान से दिल्ली पहुंचे। दिल्ली पहुंचने के बाद मीडिया से बात करते हुए गहलोत ने कहा कि हम कांग्रेस अध्यक्ष के अधीन काम करते हैं। अनुशासन हमारी पार्टी की परंपरा है। 50 साल से पार्टी अध्यक्ष के अधीन रहकर हम काम करते आ रहे हैं। हमेशा कांग्रेस पार्टी में अनुशासन रहा है। सब ठीक है, यह घर की बातें हैं हम सुलझा लेंगे। आंतरिक राजनीति में यह चलता रहता है। गुरुवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्षा सोनिया गांधी से मिलूंगा, उसके बाद बात करूंगा।
29 सितंबर: गहलोत का अध्यक्ष बनने से इनकार
29 सितंबर यानि आज गहलोत ने सोनिया गांधी से मुलाकात की। मुलाकात के बात गहलोत ने मीडिया से बातचीत में नया धमाका किया। उन्होने कहा कि उन्होंने सोनिया गांधी से माफी मांगी है। वह अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे और उनके सीएम पद को लेकर फैसला सोनिया गांधी ही करेंगे। उन्हें सोनिया गांधी का हर फैसला मंजूर होगा। गहलोत के इस बयान के साथ ही कई दिनों से चला आ रहा सस्पेंस भी खत्म हो गया कि वह अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे या नहीं। लेकिन ये सियासी घमासान अभी खत्म होता नहीं दिख रहा है। अगर सोनिया उन्हें सीएम पद से हटाने का फैसला लेती हैं तो राजस्थान में गहलोत समर्थक विधायकों के विद्रोह का अगला दौर शुरू होता तय है।