चुनाव प्रचार में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस अभी 'बैकफुट' पर, क्यों कह रहे इसे तुरुप की चाल?

चुनाव प्रचार में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस अभी 'बैकफुट' पर, क्यों कह रहे इसे तुरुप की चाल?

भाजपा नेतृत्व ने योजनानुसार चुनावी रणनीति बनाते हुए राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना में चुनावी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री से लेकर गृह मंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर तमाम दूसरे बड़े नेता और मंत्रियों को कार्यक्रम उद्घाटन और शिलान्यास के मार्फत जनता से सीधा संवाद करना शुरू कर दिया है...

चुनाव प्रचार भाजपा के नेता भी कर रहे हैं और कांग्रेस के भी। बस अंतर इतना है कि भाजपा विधानसभा चुनावों को लेकर संबंधित राज्यों में अपनी पूरी ताकत से जुटी है। जबकि कांग्रेस के नेता अगले हफ्ते होने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए प्रचार करने में अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के नजरिए से कांग्रेसी फिलहाल प्रचार के लिहाज से अभी भी बैकफुट पर ही हैं। हालांकि कांग्रेस के नेताओं का कहना है, जिसे विरोधी बैकफुट पर कह रहे हैं, दरअसल कांग्रेस की वही सबसे बड़ी ताकत हैं और वही उसकी तुरुप की चाल भी है।

इस साल से लेकर अगले साल तक देश के अलग-अलग अहम राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। भाजपा नेतृत्व ने योजनानुसार चुनावी रणनीति बनाते हुए राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना में चुनावी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री से लेकर गृह मंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर तमाम दूसरे बड़े नेता और मंत्रियों को कार्यक्रम उद्घाटन और शिलान्यास के मार्फत जनता से सीधा संवाद करना शुरू कर दिया है। लगातार भाजपा के बड़े नेता इन राज्यों में जाकर बड़ी-बड़ी रैलियां बड़े-बड़े कार्यक्रम और आयोजनों के माध्यम से शिरकत कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस के नेता भी इन राज्यों में पहुंच रहे हैं, लेकिन उनका मकसद थोड़ा बदलाव हुआ है। सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की हो रही है कि जिन राज्यों में चुनाव अगले कुछ महीनों में होने हैं, वहां पर तो कम से कम पार्टी के दिग्गज नेताओं को जाकर रैलियां और चुनावी जनसभाएं करनी ही चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक एसएन तोमर कहते हैं कि कांग्रेस को इस बात के लिए जरुरत से ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है कि वह अपना चुनाव प्रचार राज्यों में होने वाले विधानसभा के चुनावों के लिए कर रही है या अगले हफ्ते होने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनावों के लिए। तोमर कहते हैं कि अभी पार्टी के चुनिंदा नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनावों के लिए ज्यादा तैयारियों में लगे हैं।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीते कुछ हफ्ते का अगर आप रिपोर्ट कार्ड उठा कर देखेंगे, तो पाएंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर तमाम अन्य बड़े नेता और मंत्री राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना समेत पूर्वांचल के राज्यों पर फोकस करते हुए अपनी चुनावी जनसभाओं को लगातार बढ़ा रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हिमांशु शितोले कहते हैं कि भाजपा की आक्रामक रणनीति ही पार्टी को कई मामलों में आगे खड़ा करती है। जबकि कांग्रेस पार्टी को भी उसी आक्रामकता के साथ अलग-अलग राज्यों में चुनाव प्रचार रैलियों और जनसभाओं के माध्यम से जनता से संवाद करना चाहिए। हालांकि हिमांशु का कहना है कि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के नेता इन राज्यों में चुनाव प्रचार नहीं कर रहे हैं, लेकिन जिस कद के नेताओं को चुनावी राज्यों में प्रचार करना चाहिए वह अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव में व्यस्त हैं।

दरअसल कांग्रेस के चुनावी राज्यों में बड़े नेताओं की शिरकत न कर पाने के पीछे बहुत बड़ी वजह है, कांग्रेस की चल रही भारत जोड़ो यात्रा भी है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस के जिन बड़े चेहरों को इस वक्त हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना या पूर्वोत्तर के राज्यों में होना चाहिए। वे इस वक्त राहुल गांधी के साथ कांग्रेस जोड़ो यात्रा में मौजूद हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता इस पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि आप बीते कुछ दिनों का दौरा ही देख लीजिए, तो आपको पता चल जाएगा कि कांग्रेस के जिन नेताओं की उत्तर भारत में अच्छी पकड़ है, वह दक्षिण भारत में राहुल गांधी के साथ पदयात्रा कर रहे हैं। जबकि रणनीतिक तौर पर ऐसे नेताओं को चुनावी राज्यों की कमान संभाल नहीं चाहिए और वहां पर धुआंधार तरीके से प्रचार करना चाहिए जैसा कि दूसरे विपक्षी दल कर रहे हैं।

हालांकि कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बकायदा चुनावी राज्यों में बड़े नेताओं की जनसभा और रैलियों और कार्यक्रमों का शेड्यूल लगा हुआ है। चुनावी रणनीति के लिहाज से सब कुछ हो भी रहा है। हालांकि दबी जुबान से पार्टी के एक नेता कहते हैं कि जब तक राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो जाता, तब तक विधानसभा चुनावों में इन बड़े नेताओं की सक्रियता नहीं दिख सकती। पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के दावेदारों में शामिल मल्लिकार्जुन खड़गे बुधवार को चंडीगढ़ में थे। उन्होंने वहां पर बैठक की और हिमाचल प्रदेश जो चुनावी राज्य है, वहां के नेताओं से भी मुलाकात की। पार्टी के नेताओं का कहना है जब पार्टी के नेता ऐसे माहौल में चुनाव प्रचार करने जाते हैं, तो वह विधानसभा चुनावों की भी पूरी रणनीति को समझते हैं और दिशा निर्देश भी देते हैं।

हालांकि इन सबसे इतर कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि जिसे लोग कांग्रेस चुनाव प्रचार के लिहाज से बैकफुट पर मान रहे हैं, दरअसल वह कांग्रेस की रणनीति को समझ नहीं पा रहे हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और पदाधिकारी का कहना है कि पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी लगातार चुनावी राज्यों में न सिर्फ संपर्क कर रहे हैं, बल्कि अपनी चुनावी रणनीति के लिहाज से पूरी योजना को आगे बढ़ा भी रहे हैं। इसके अलावा वरिष्ठ नेता का कहना है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से जो करंट पूरे देश में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और चुनावी राज्यों में पहुंच रहा है, वही पार्टी के लिए एक बड़ी तुरुप की चाल सरीखा है। इसके पीछे वह तर्क देते हुए कहते हैं कि पार्टी के कई बड़े नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष के होने वाले चुनाव के माध्यम से सिर्फ चुनावी राज्य ही नहीं, बल्कि देश के अलग-अलग राज्यों के कार्यकर्ताओं पदाधिकारियों और डेलीगेट से संपर्क स्थापित कर रहे हैं। जो विधानसभा चुनावों के साथ-साथ लोकसभा चुनावों की तैयारियों के लिहाज से भी मुफीद है। उनका कहना है कि भाजपा सत्ता में है, इसलिए उनके चुनावी कार्यक्रम और बड़ी-बड़ी योजनाओं के शुभारंभ और उद्घाटन दिख जाते हैं। जबकि कांग्रेस उनसे ज्यादा मेहनत करके जनता के बीच पहुंच रही है।

Post a Comment

और नया पुराने