बाबा साहब दलितों के अभिमन्यु, संविधान के वास्तुकार और युग-निर्माता
- विपिन कुमार
संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर बहुजनों के चिंतक, समाज सुधारक थे। शोषितों, वंचितों के अधिकार के लड़ाई में उनकी अहम भूमिका है। बाबा साहब एक ऐसे मसीहा थे, जिन्होंने हमें, हम सबको बोलने, लिखने, पढ़ने, वस्त्र पहनने का अधिकार दिलाया।
आज सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत और समतामूलक समाज के निर्माणकर्ता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती है। डॉ भीमराव अंबेडकर को संविधान निर्माता के तौर पर जाना जाता है। उनका जन्म 14 अप्रैल को हुआ था। भारत रत्न अम्बेडकर पूरा जीवन संघर्ष करते रहे । भेदभाव का सामना करते हुए उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। आजादी की लडाई में शामिल हुए और स्वतन्त्र भारत को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाने के लिए संविधान निर्माण में अतुल्य भूमिका निभाई। बाबा साहेब ने पिछड़े और कमजोर वर्ग के अधिकारों के लिए पूरा जीवन संघर्ष किया।
बाबा साहब के कुछ अनमोल विचार
- हिंदू धर्म में, विवेक कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
- बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
- जीवन लंबा होने की बजाये महान होना चाहिए।
- शिक्षा जितनी पुरूषों के लिए आवश्यक है, उतनी ही महिलाओं के लिए भी।
- कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा जरूर दी जानी चाहिए।
बाबा साहव डा. भीमराव अंबेडकर दलितों के अभिमन्यु संविधान के बास्तुकार और युग निर्माता थे। डा. अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में आधुनिक मध्य प्रदेश के महू नामक स्थान पर हुआ था । महार परिवार में जन्में डा.अंबेडकर के पिता राम जी सकपाल ब्रिटीश फौज में सुबेदार थे जबकि माता भीमा बाई ईश्वर भक्त गृहिणी थी।
एक संत ने भविष्यवाणी करते हुए भीमा बाई को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि तुम्हें एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ती होगी। भीमा बाई के पुत्र का नाम भीम रखा गया। इनके पिता रामजी सकपाल सेवा निवृत होने के बाद महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में अम्बावडे गाँव में बस गये। इस कारण इनका नाम स्कूल में भर्ती करवाते समय भीम राव रामजी अम्बावडे लिखा गया। नाम के उच्चारण में परेशानी होने के कारण स्कूल के एक ब्राहम्ण शिक्षक- रामचंद्र भागवत अंबेडकर ने अपना उपनाम इन्हें रख दिया । तभी से इनका नाम अंबेडकर पडा।
डा. अंबेडकर को महार जाति में पैदा होने के कारण स्कूली शिक्षा के दौरान उन्हें कई कटू अनुभव हुए । उन्हें कमरा में पीछे बैठाया जाता था,पानी पीने की अलग ब्यवस्था थी। उस समय समाज में काफी असमानतायें थी जिस कारण डा. अंबेडकर का जीवन काफी संर्घषमय एवं सामाजिक विडंबनाओं एवं कुरीतियों से लडते हुए बीता। इनकी प्रारमंभिक शिक्षा दापोली के प्राथमिक विद्यालय में हुई। 6 बर्ष की आयु में इनके माता का निधन हो गया। फलस्वरुप इनका लालन –पालन इनकी बुआ ने की। 1907 में इन्होंने मैट्रीक की परीक्षा पास किया। अपने बिरादरी का मैट्रीक पास करने वाले पहले छात्र थे। फिर इनकी शादी भीकूजी वालगकर की पुत्री रमा से हो गई।
उच्च शिक्षा के लिए सतारा से मुम्बई के एलिफिंसटन कालेज में गये।इस दौरान बडौदा महाराज की ओर से उन्हे 25रु प्रतिमाह वजीफा मिलने लगे। 1912 में बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद बडौदा राज्य की सेवा में वित फिर रक्षा में लेफ्टिनेंट पद पर नियुक्त हुए। बडौदा महाराज ने उच्च शिक्षा के लिए सन 1913 में इन्हें न्यूय़ार्क भेज दिया। उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद स्वदेश आये और भारत में फैले अस्पृश्यता को रोकने के लिए काफी प्रयास किया और संविधान में इसकी ब्यवस्था करवाया । स्वतंत्र भारत के प्रथम कानूनन मंत्री बने। दलितो के उद्दार के साथ साथ समाजिक भाईचारे को बढावा देने तथा वर्ण ब्यवस्था से ब्याप्त कुरीतियों को खत्म करने के लिए ता-उम्र लडते रहे और अंत में बाबा भीम राव अंबेडकर का 6 दिसंबर 1956 को इनका निधन हो गया।
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लेखक-- विपिन कुमार,आर0आई0 (टी) |
14 अप्रैल बाबा साहब डॉ अंबेडकर की 132वीं जयंती पर सर्वसाधारण की जानकारी हेतु यह आलेख रेनबोन्यूज में प्रकाशनार्थ हमें बिपिन कुमार (युवा लेखक, विचारक, चिंतक) ने भेजा है। इस आलेख में लेखक ने डॉ अंबेडकर से संबंधित कुछ ऐसी जानकारियां दीं हैं, जिन्हें बहुत कम ही लोग जानते होंगे। विपिन कुमार द्वारा प्रेषित आलेख का प्रकाशन रेनबोन्यूज हुबहु कर रहा है।
लेखक विपिन कुमार एक युवा सुशिक्षित, विचारक, चिंतक हैं। वर्तमान में ये उत्तर प्रदेश के जनपद अंबेडकरनगर परिवहन विभाग में संभागीय निरीक्षक(प्राविधिक) [आर0आई0 (टी)] के पद पर नियुक्त हैं। - सत्यम सिंह, रेनबोन्यूज