अमेठी। पूर्व मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति का जीवन किसी फिल्म की कहानी की तरह है। पुश्तैनी धंधा यानी मिट्टी के बर्तन बनाने तथा पोताई से शुरू हुआ सफर सत्ता के शिखर से होते हुए जेल के सलाखों तक पहुंच गया है। बड़ी दिलचस्प कहानी है कि एक रंक कैसे राजयोग पाने के बाद राजदंड का भागी बन गया। बीपीएल कार्ड धारक से रातोंरात करोड़ों के मालिक बने गायत्री के चाहने वाले भी अमेठी में बहुत हैं। दुष्कर्म के मामले में कोर्ट से सजा मिलने के बाद परिवार के साथ उनके समर्थकों के चेहरों पर मायूसी है तो विरोधी खुश हैं। चार साल से गायत्री सलाखों के पीछे हैं पर जिले में अब भी उनके समर्थकों की संख्या उनके विरोधियों को परेशान करने वाली है।
तीन दिन से अमेठी की हवा बदली हुई है। हर तरफ गायत्री की चर्चा है। वह भी कुछ वैसे ही जैसे उनके मंत्री रहते हुए अमेठी में हुआ करती थी। बसए अंतर इतना है। इस बार विरोधी चर्चा को बढ़ा रहे हैं। सीएम से लेकर पीएम तक गायत्री का नाम चुनावों में ले रहे थे पर तब किसी ने नहीं सोचा था कि गायत्री के राजनीतिक जीवन का अंत इतना बुरा होगा। अमेठी के छोटे से गांव परसावा में सुखई राम के घर जन्मे गायत्री बिल्डिंगों में पोताई करते थे। 1985 से 1990 तक एचएएल कोरवा में पेटिंग का काम करने वाला मजदूर 1993 में पहली बार बाल्टी चुनाव चिन्ह के साथ विधानसभा के चुनाव में उतरा और 2012 में सपा के टिकट पर विधायक बना।
बीपीएल कार्ड पर लिया था आवास रू गायत्री ने पिछली सदी के नौवें दशक में बीपीएल कार्ड धारक के रूप में आवास के लिए भूमि का पट्टा लिया था। गायत्री पर अमेठी कोतवाली में 1994 में मुकदमा संख्या 284/94 में दर्ज हुआ था। जिसमें 323, 452/596 आइपीसी के साथ दलित उत्पीड़न का मामला दर्ज हुआ था।
अमेठी ने देखे गायत्री के कई रूप रू गायत्री के कई रूप अमेठी ने देखे। कभी पैदल काम की तलाश करते तो कभी थाने व तहसील में अधिकारियों की जी हजूरी करते हुए भी देखा। वहीं सिपाही से लेकर कलेक्टर तक हाथ बांधे गायत्री के सामने खड़े रहने की तस्वीर अब भी जेहन में ताजा है।
