सुना है कि तवायफें किसी की नहीं होती

सुना है कि तवायफें किसी की नहीं होती


सुना है कि तवायफें किसी की नहीं होती

सरकारों की राजनीति और कारिंदों की अदायगी योजनाओं और घोषणाओं की महफिलों मे

आज की जनता तवायफ हो गई
उसे मतलब ही ना रहा
आपदा में पलायन करते लोगों का
घावों से रिसते पांवों का
पैरों में पड़ गए छालों का
अनगिनत जो मर गए आपदा में
वह क्रोध न जाने कहां खो गया
शायद पांच किलो राशन की थैली में खो गया
याद नहीं आया नोटबंदी का वक्त
कितनी शादियाँ बिन ब्याही रह गई
पैसों के पड़ गए थे लाले
और कितने ही हो गए थे बर्बाद
मगर जनता को कहां कुछ आया याद
ना मांगती रोजगार और ना चिंता शिक्षा की
बन रही भीड़ बस सियासत की
इसीलिए तो सरकारों की महफिल में जनता तवायफ है।

-प्रियंका वरमा माहेश्वरी, गुजरात

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