चार साल में ही दो लाख टन से सौ लाख टन गेहूं निर्यात की राकेटी कामयाबी

चार साल में ही दो लाख टन से सौ लाख टन गेहूं निर्यात की राकेटी कामयाबी


भारत पूरी दुनिया
को अन्न देने को तैयार कोई हवा हवाई या बड़बोलापन नहीं माना जा सकता। यह तो देश के अन्नदाता की मेहनत और सरकारी नीतियों का परिणाम है कि आज देश के गोदाम अन्न-धन से भरे हैं। दुनिया का बड़ा गेहूं उत्पादक देश होने के बावजूद गेहूं के निर्यात में चार साल पहले तक भारत की हिस्सेदारी नगण्य के बराबर रही है। पर पिछले चार साल में ही भारत आज गेहूं के निर्यात के क्षेत्र मंे लंबी छलांग लगाने की स्थिति में आ गया है। युद्ध और कोरोना जैसी महामारी के चलते दुनिया के देशोें के सामने खाद्यान्नों का संकट आ गया है वहीं आबादी के हिसाब से दुनिया को दूसरा सबसे बड़ा देश होने के बावजूद खाद्यान्नों के मामलें मेें आज भारत पूरी तरह से आत्म निर्भर होने के साथ ही दुनिया के देशों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की स्थिति में आ गया है। केवल चार साल में हीभारत ने गेहूू के निर्यात में नए आयम स्थापित किए हैं। आज भारत दो लाख टन से सौ लाख टन वो भी केवल चार साल मंें ही गेहूं के निर्यात आंकड़ें को छूने जा रहा है। यह किसी राकेटी उड़ान से कम नहीं हो सकती। हांलाकि गेहूं के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है। 2016 में 0.14 प्रतिशत की गेहूु निर्यात की हिस्सेदारी 2020 तक बढ़कर 0.54 प्रतिशत तक ही पहुंची है यानी की एक प्रतिशत से भी कम है पर हालात  तेजी से बदल रहे हैं।

पहले कोरोना और अब यूक्रेेन-रुस युद्ध ने दुनिया के सामने सारी तस्वीर ही बदल कर रख दी है। रुस और यूक्रेन पर पूरी तरह से निर्भर मिश्र जैसे अनेक देश आज भारत की और ताक रहे हैं। पिछले दिनोें ही मिश्र ने भारत से गेहूं आयात करने को लेकर हरी झंडी दिखा दी है। भारत ने भी मिश्र को शुरुआती दौर में 30 लाख टन गेहूं निर्यात का लक्ष्य तय किया है। देखा जाए तो भारत के पास गेहूं के भण्डार भरे हैं। इस साल भी गेहूं का रेकार्ड उत्पादन होने के अनुमान लगाया जा रहा है। मण्डियों में नए गेहूं की आवक शुरु हो गई है। हांलाकि इस बार सरकारी खरीद का आंकड़ा छूने मेें परेशानी आ रही है और इसका कारण दूसरे अर्थों में सकारात्मक संकेत भी माना जाना चाहिए। क्योंकि इस साल मण्डियों में या यों कहे कि बाजार में गेहूं के भाव सरकार द्वारा घोषित एमएसपी से कहीं ज्यादा चल रहे हैं। यही कारण है कि पंजाब हरियाणा तक में किसान सरकारी खरीद केन्द्रों के स्थान पर गेहूं सीधे बेचने या भण्डारित करने पर जोर दे रहे हैं। इसका एक कारण यह भी है कि अभी तो एमएसपी से अधिक भाव चल ही रहे हैं पर रुस यूक्रेन युद्ध के चलते आने वाले समय में गेहूं की भावों में और तेजी आने के कयास लगाए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि गेहूं की विदेशों में मांग और अधिक बढ़ेगी और अंतरराष्ट्र्ीय बाजार मंे गेहंू के भाव बढ़ने का लाभ किसानों को भी मिलेगा। अमेरिकी विशेषज्ञों की माने तो देश में 12 मिलियन टन गेहूं निर्यात के लिए मौजूद है।

एक समय था जब देशवासियों को पेट भरने के लिए अमेरिका जैसे देशों के सामने गेहूं के लिए हाथ फैलाना पड़ता था। पुरानी पीढ़़ी को आज भी याद है कि घटिया किस्म का गेहूं भारत आता था। लाल बहादुर शास्त्री जी को तो देशवासियांें से एक दिन उपवास खासतौर से सोमवार को व्रत रखने का संदेश देना पड़ा था। आज भी शास्त्री जी के कोल को देखते हुए लोग सोमवार को उपवास रखते आ रहे हैं। खैर किसानों की मेहनत, कृषि विशेषज्ञों के प्रयास और केन्द्र व राज्य सरकारों की नीतियों का ही परिणाम है। आज देश विदेशों की भूख मिटाने की स्थिति में आ गया है। यह तो आंकड़ें बता रहे हैं। कोरोना के कारण देश के 80 करोड़ लोगों तक आज भी अन्न पहुंचाया जा रहा है तो कोविड़ विपरीत परिस्थितियों में खाद्यान्नों की कहीं भी कमी नहीं आने दी गई। यह सब अन्नदाता की मेहनत का परिणाम है।

जहां तक गेहूं के निर्यात का प्रश्न है मिश्र द्वारा भारत से गेहूं मंगाने पर सहमति के बाद हालात और अधिक तेजी से बदलेंगे। देश में 2019 में 2 लाख टन गेहूं का निर्यात हुआ था जो 2020 में 21 लाख टन और 2021 में 70 टन पहुंच गया और इस साल सौ लाख टन यानी की एक करोड़ टन गेहूं के निर्यात का लक्ष्य रखते हुए कार्ययोजना को अमली जामा पहनाया जा रहा है। भारत द्वारा गेहूं निर्यात के लिए नए देशों से संपर्क साधा जा रहा है। खासतौर से 9 देशों से संपर्क बनाया जा रहा है। इनमंे मोरक्को, ट्यूनिशिया, इंडोनेशिया,फिलीपींस, थाईलैण्ड, टर्की, अल्जीरिया और लेबनान प्रमुख है। मिश्र से तो निर्यात पर सहमति भी हो गई है और करीब 30 लाख टन गेहूं निर्यात का लक्ष्य रखा गया है। इससे पहले हांलाकि गेहूं का सर्वाधिक निर्यात बांगलादेश को किया जा रहा है। बांगलादेश के अलावा संयुक्त अरब अमिरात, मलेशिया, श्रीलंका, कतर और ओमान को गेहूं का निर्यात पहले से किया जा रहा है।

खाद्यान्नों मंे आत्मनिर्भरता और निर्यात का सारा श्रेय अन्नदाता को जाता है तो कृषि विज्ञानियांे और केन्द्र व राज्य सरकार की नीतियों को भी कमतर नहीं आंका जा सकता। देश के 135 करोड़ से भी अधिक देशवासियों की जरुरत को पूरा कर विदेशों में निर्यात की स्थिति मंे लाना बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। केवल चार साल में ही दो लाख टन से 100 लाख टन का आंकड़ा छूना किसी अजूबे से कम नहीं है। इससे निश्चित रुप से भारतीय कृषि को वैश्विक पहचान मिलने के साथ ही विदेशी आय के नए रास्ते खुुले है। आज दुनिया के देशों को बड़े गर्व से यह कहने की स्थिति में आना कि भारत पूरी दुनिया को अन्न देने को तैयार देश के लिए गर्व की बात है।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

Post a Comment

और नया पुराने