अम्बेडकरनगर। जिले की विभिन्न शहरी व ग्रामीण बाजारों में बाट-माप विभाग के उदासीन रवैया के कारण उपभोक्ता दुकानों से सामान खरीदने में ठगी का शिकार हो रहे हैं। विभाग पूरी तरह से निष्क्रिय है। न तो कभी विभागीय अधिकारी औचक निरीक्षण करते है और ना ही दुकानदार कभी अपने बाट की जांच करवाते हैं। ग्रामीण इलाके के सब्जी मंडियों और बाजार में मानक बाट बटखरे की जगह ईट पत्थर के बाट से तौल की जा रही है।
यह टूटकर या गिरकर मूल वजन से कम हो जाते हैं। बावजूद इसके दुकानदार इनका इस्तेमाल बेधड़क होकर कर रहे हैं। जबकि इसके बारे में सरकार का निर्देश है कि माप तौल यंत्र का सत्यापन समय-समय पर होता रहे और संबंधित दुकानदार को इसकी रसीद भी दी जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश विक्रेताओं को नियम की जानकारी नहीं है।
आरोप है कि अफसर अपने विभाग के अधिकृत एजेंटों के जरिये अवैध उगाही कराते हैं। बिना नवीनीकरण के माप व तौल का काम भी खूब ही चल रहा है। ग्राहक घटतौली के शिकार हो रहे हैं। बाट-माप विज्ञान विभाग के नियमानुसार हर दो साल बाद बाट, तराजू व इलेक्ट्रॉनिक वेट मशीन (कांटा) की जांच होती है। बाट पर मोहर लगती है तो इलेक्ट्रॉनिक कांटे पर जांच के बाद टैग (सील) लगती है।
बाजार में बड़ी संख्या में बिना मोहर के बांट व बिना नवीनीकरण टैग के कांटे इस्तेमाल किए जा रहे हैं। मोहर व टैग लगाने के लिए विभाग ने जिले में दो दर्जन एजेंट अधिकृत किए हैं, जो रिपेय¨रग, इलेक्ट्रॉनिक कांटों का निर्माण व बिक्री करते हैं। जिस एजेंट के पास मरम्मतीकरण का लाइसेंस है, वे सिर्फ इसी काम के लिए अधिकृत है। दुकानदारों ने बताया 30 किलो के इलेक्ट्रॉनिक कांटे के टैग नवीनीकरण का शुल्क 250 रुपये है। वसूला 400 से 500 रुपये तक जाता है।
