ये आंसू कहीं सुनामी न बन जायें ?

ये आंसू कहीं सुनामी न बन जायें ?

देश के नये संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर कमलों द्वारा गत 28 मई को किया जा चुका है। यह अजीब भ्रमपूर्ण स्थिति है कि भारत को स्वदेश निर्मित नये संसद भवन मिलने जैसी 28 मई की महत्वपूर्ण तिथि को इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जायेगा या यह दिन देश के इतिहास का एक काला अध्याय दर्ज होगा ? ज़ाहिर है सत्ता पक्ष के लोग और इनके समर्थक ,भोंपू मीडिया आदि ने तो नये  संसद भवन के उद्घाटन दिवस को कुछ इस अंदाज़ में पेश किया गोया देश को वास्तव में ग़ुलामी से मुक्ति ही अब मिली हो। 



- तनवीर जाफ़री 


ख़ैर,सत्ता की ख़ुशामद परस्ती और हाकिम के सुर से अपना सुर मिला कर बोलने जैसी प्रवृति चूँकि अब एक आम बात हो चुकी है लिहाज़ा इस विषय पर चर्चा करना ही फ़ुज़ूल है। परन्तु देश इन सवालों के जवाब तो ज़रूर जानना चाहेगा की आख़िर इतने बड़े आयोजन व कार्यक्रम में राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति को आमंत्रित न करने का कारण क्या था ? देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे महामहिम राष्ट्रपति को आमंत्रित न करना उनका अपमान है या नहीं ? देश को यह जानने की भी उत्सुकता है कि सत्ता पक्ष व मीडिया के इतने बखान करने के बावजूद आख़िर किन परिस्थितियों में देश के 20 प्रमुख विपक्षी राजनैतिक दलों ने नये संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार किया ? 

                                                            और इन सब से इतर नये संसद भवन के उद्घाटन की इसी 28 मई को नई दिल्ली के जंतर मंतर पर बैठे ओलम्पियन खिलड़ियों के साथ पुलिस किस तरह पेश आई,इस घटना को भी 28 मई का इतिहास कभी भूल नहीं पायेगा। कितना दुर्भाग्यपूर्ण था यह दृश्य कि एक तरफ़ जहां ओलम्पिक पदक विजेता महिलायें अपने साथ हुये शारीरिक शोषण के आरोपी एक भाजपा सांसद की गिरफ़्तारी को लेकर लोकतांत्रिक तरीक़े से धरना प्रदर्शन कर रही थीं। तो पुलिस उन्हें नये संसद भवन के पास उनके द्वारा आहूत महिला पंचायत में जाने से रोकने लिये अपना पूरा ज़ोर लगाए हुए थी।  दिल्ली की सीमाओं को एक दिन पहले से ही महिला पंचायत में पहुँचने वालों के प्रवेश के लिये सील कर दिया गया था। तो दूसरी ओर वही आरोपी सांसद जिसपर पहले भी दर्जनों आपराधिक केस दर्ज हैं, उसी नवनिर्मित संसद भवन के उद्घाटन समारोह में सम्मानित अतिथि सांसद के रूप में शरीक होकर 'ऐतिहासिक उद्घाटन समारोह' की शोभा बढ़ा रहा था ? एक तरफ़ उसी सांसद के कथित शोषण का शिकार अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेता पहलवान उनके साथ हो रही पुलिस ज़्यादती व धक्केशाही से दुखी होकर चीख़ चिल्ला रही थीं व आंसू बहा रही थीं तो दूसरी ओर जंतर मंतर से कुछ ही दूरी पर सत्ता संरक्षण में वही आरोपी सांसद भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच सत्ता के जश्न का हिस्सा बनकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा था ?

                                                         राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय  खेल प्रतियोगिताओं में मिले जिन पदकों को हासिल करने के लिये इन जांबाज़ पहलवानों को जी तोड़ मेहनत करनी पड़ी,जिसकेलिए समाज के ताने सहने पड़े और जिन पदकों को हासिल करने से 140 भारतवासियों को गर्व हुआ,देश का नाम पूरी दुनिया में ऊँचा हुआ,पहलवानों के जिन पदकों से तिरंगे की शान बढ़ी वही पदक गंगा नदी में प्रवाहित करने का ख़याल उन खिलाड़ियों के मन में आना और इसके लिये उनका हरिद्वार तक कूच भी कर जाना,यह घटना कितनी दुखदायी है ? पहलवानों की बेबसी और लाचारी का सुबूत देने वाली यह घटना कितनी ह्रदय विदारक है। भला हो किसान नेताओं का जिन्होंने   खिलाड़ियों को गंगा नदी में अपना बहुमूल्य मेडल फेंकने से रोक लिया। देश ने किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी की चंद सेकेंड की पहलवानों से की गयी वह भावुक अपील भी सुनी जिसमें वे पहलवानों से  मैडल न फेंकने की अपील करते करते फफक कर रो पड़े। पूरा देश खिलाड़ियों की इस घोषणा से स्तब्ध रह गया था कि शोषण की शिकार देश की शान इन खिलाड़ियों ने देश की ख़ातिर जिन पदकों को अपनी भरपूर मेहनत से हासिल किया था वह पदक आख़िर क्योंकर नदी के प्रवाह में बहा दिये जायेंगे ?

                                                          परन्तु लगता है कि सत्ता का घमंड और एक आरोपी सांसद को बचाने की शासकीय मुहिम का अब अंत होने वाला है। बेबसी के आलम में देश का गौरव बन चुकी बेटियों के आंसू अब यथाशीघ्र अपना रंग दिखाने वाले हैं। याद कीजिये किसान आंदोलन के दौरान जब सत्ता के चंद गुर्गों ने किसान नेता राकेश टिकैत व उनके साथियों के साथ दुर्व्यवहार किया था उस समय टिकैत की आँखों से निकले आंसुओं ने किसान आंदोलन में तूफ़ान खड़ा कर दिया था। और स्वयं को अजेय व ज़िद्दी समझने वाली सरकार ने किसानों के सामने घुटने तक दिये थे। तीन विवादित कृषि क़ानून वापस लेने पड़े थे। और अब एक बार दुनिया के पहलवानों को धूल चटाने वाले पहलवान बेटियों के आंसू आने वाले कुछ दिनों में क्या गुल खिलाने वाले हैं निकट भविष्य में सामने आने वाला है।

                                                          अब तो  अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति  ने भी महिला पहलवानों के साथ हुई घटना पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। पूरे विश्व के मीडिया ने इस पूरे घटनाक्रम पर विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित की है। परन्तु देश के मान सम्मान की झूठी दुहाई देने वालों को अपनी पार्टी के सांसद की रक्षा पहली प्राथमिकता दिखाई दे रही है। इस बीच संयुक्त किसान मोर्चा भी सक्रिय हो उठा है। ऐसी संभावना है कि संयुक्त किसान मोर्चा अपनी पूरी ताक़त के साथ देश की बेटियों की लड़ाई लड़ने का मन बना चुका है। 5 जून को राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन की घोषणा संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा कर दी गयी है। जिन किसान नेताओं ने बेटियों के इंसाफ़ दिलाने के लिये उन्हें मैडल फेंकने से रोका है वही किसान अब बेटियों के हक़ में सरकार से दो दो हाथ करने के लिये तैयार हो रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि आने वाले दिनों में मजबूर बेटियों और चढूनी जैसे मज़बूत किसान नेताओं की आँखों से निकलने वाले आंसू अहंकारी सत्ता के लिये सुनामी बन जायें ?

                                                                                        


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