सरकारी पेड़ों की अवैध कटाई पर वन विभाग की मिलीभगत का आरोप

सरकारी पेड़ों की अवैध कटाई पर वन विभाग की मिलीभगत का आरोप




अंबेडकरनगर : जिले के अकबरपुर कोतवाली क्षेत्र स्थित गौहनिया मार्ग रेलवे क्रॉसिंग के पास परमदा गांव में वन विभाग की मिलीभगत से सरकारी पेड़ों की अवैध कटाई का मामला सामने आया है। 


स्थानीय सूत्रों के अनुसार, बन माफिया ने इस क्षेत्र में सरकारी पेड़ों की अवैध कटाई शुरू कर दी है, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि सरकारी संपत्ति की भी बर्बादी हो रही है। इन बन माफिया के साथ वन दारोगा, वन रक्षक और अन्य विभागीय जिम्मेदार मिले हुए बताए गए हैं। वन दारोगा के बारे में कहा जाता है कि यह विभागीय मुलाजिम बीते 15 सालों से जमा हुआ है। यह पुराना वन कर्मी काफी चर्चित है और वनमाफिया का खासम खास यानी हमदर्द हम प्याला और हम निवाला बना हुआ है।

 

इस वन दारोगा के बारे में कहा गया है कि यह वन रक्षक था 2 साल पहले प्रोन्नति पाकर वन दारोगा हुआ है। इसकी पोस्टिंग अकबरपुर में कई सालों से है। 


इस वन दारोगा के बारे में चर्चा है कि यह एक राजनीतिक पार्टी का कार्यकर्ता है। विरोध स्वरूप योगी सरकार के नियमों की अनदेखी करना इसका परम धर्म है। यादव जाति का यह वन कर्मी प्रदेश की भाजपा सरकार के एंटी काम करता है।


क्षेत्र के लोगों ने आरोप लगाया है कि महा भ्रष्ट गणेश यादव नामक वन दारोगा के चल और अचल संपत्तियों की जांच होनी चाहिए। दोष सिद्ध होने पर इसको निलंबित कर विधिक कार्रवाई की जाए। 


सूत्रों के अनुसार इस विवादित वन कर्मी ने पिछले कई चुनावों में pda यानी पिछड़ा, दलित और अल्प संख्यकों को भड़का कर भाजपा के विरुद्ध मतदान करने के लिए प्रेरित किया था। 


ओबीसी जाति का यह वन दारोगा मनमाने तरीके से हरे भरे वृक्षों को वन माफिया से सांठ गांठ करके इलाके को वृक्ष विहीन कर दे रहा है। ऑक्सीजन का स्तर गिर गया है। हालात यह बन रहे हैं कि जल्द ही लोगों को प्राण वायु ऑक्सीजन के लिए अन्य जिलों प्रांतों का सहारा लेना पड़ेगा।


स्थानीय निवासियों का आरोप है कि इस अवैध कटाई में वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत है, जो इन गतिविधियों को रोकने में पूरी तरह से नाकाम रहे हैं। हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि अब यह पेड़ कटाई एक नियमित गतिविधि बन चुकी है। यह क्षेत्र वन विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन यहां पर हो रही अवैध कटाई पर प्रशासनिक अधिकारियों की चुप्पी सवाल उठाती है।


इस अवैध कटाई से न केवल पर्यावरण का नुकसान हो रहा है, बल्कि यह सरकारी संपत्ति को भी नुकसान पहुँचा रहा है। 


लंबे समय से यहां स्थित पेड़ क्षेत्रीय पर्यावरण का हिस्सा रहे हैं, और इनकी अवैध कटाई से जलवायु परिवर्तन, स्थानीय जैवविविधता और भूमि की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, कटे गए पेड़ों का अवैध व्यापार भी जंगलों की अपव्यवस्था की ओर इशारा करता है।


स्थानीय लोगों ने वन विभाग और प्रशासन के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया है। उनका कहना है कि इस तरह की गतिविधियां लगातार बढ़ती जा रही हैं, और अगर जल्द ही प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की, तो क्षेत्र के पर्यावरण को फिर से नुकसान होना तय है। 


उन्होंने अधिकारियों से इस मामले में सख्त कार्रवाई की मांग की है और वन संपत्ति की सुरक्षा के लिए समुचित कदम उठाने का आग्रह किया है।


हालांकि, वन विभाग की ओर से इस मामले पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन स्थानीय निवासियों का कहना है कि प्रशासन की चुप्पी इस गंभीर मुद्दे पर संदेह पैदा करती है। यदि जल्द ही इस पर कार्रवाई नहीं की जाती, तो यह अवैध गतिविधियां जिले के अन्य क्षेत्रों में भी फैल सकती हैं। 

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