याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के जज ने भी माना था कि याचिकाकर्ता लंबे समय तक जमानत पाने का अधिकारी है। इसके बावजूद याचिकाकर्ता को सिर्फ 45 दिन की अंतरिम जमानत दी गई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कोई अदालत यह निष्कर्ष निकालती है कि कोई आरोपी मुकदमे की सुनवाई पूरी होने तक जमानत पाने का हकदार है तो उसे अल्प अवधि के लिए ही राहत देना अवैध है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे आदेश स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। बता दें कि एनडीपीएस एक्ट 1985 के तहत आरोपी एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने 29 नवंबर को दिए अपने आदेश में कहा कि हकदार होने के बावजूद अल्प अवधि के लिए जमानत देना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने ओडिसा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के जज ने भी माना था कि याचिकाकर्ता लंबे समय तक जमानत पाने का अधिकारी है। इसके बावजूद याचिकाकर्ता को सिर्फ 45 दिन की अंतरिम जमानत दी गई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने देखा है कि यह पांचवां या छठा आदेश है जो उसी हाईकोर्ट से आया है, जिसमें आरोपी को लंबे समय तक जमानत पर रिहा करने के योग्य माना गया था लेकिन इसके बावजूद याचिकाकर्ता को कम समय के लिए जमानत दी गई।
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