शहरी स्वास्थ्य मिशन में 6 करोड़ की अनियमितता: सरकारी योजनाओं को लगा भ्रष्टाचार का वायरस!

शहरी स्वास्थ्य मिशन में 6 करोड़ की अनियमितता: सरकारी योजनाओं को लगा भ्रष्टाचार का वायरस!

-सत्यम सिंह(7081932004)




अम्बेडकरनगर। जनता की सेहत सुधारने के लिए चलाई जा रही राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम) की योजनाएं खुद ही भ्रष्टाचार की गंभीर बीमारी की चपेट में आ गई हैं। केंद्र और राज्य सरकार द्वारा भेजा गया करोड़ों का बजट आखिर गया कहां? यह सवाल तब उठा जब जिलाधिकारी अविनाश सिंह ने इस योजना की समीक्षा की और 6 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता का मामला सामने आया।


जांच में पता चला कि बीते चार वर्षों में 13 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन 6 करोड़ रुपये का कोई स्पष्ट हिसाब नहीं मिला। इस दौरान शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को मिलने वाले फंड को सीधे जिला स्तर से भुगतान कर दिया गया, जिससे केंद्रों तक जरूरी संसाधन नहीं पहुंचे और गबन की आशंका गहराती चली गई। जैसे ही यह मामला खुला, स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया!


शासन ने शहरी स्वास्थ्य केंद्रों की पारदर्शी वित्तीय व्यवस्था के लिए पांच प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए अलग-अलग बैंक खाते खोलने का आदेश दिया था। इन खातों का संचालन प्रभारी चिकित्साधिकारी और स्थानीय निकाय के सभासद के संयुक्त हस्ताक्षर से होना था।


लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन खातों का केवाईसी ही नहीं कराया गया! बैंक खाते खोले गए, लेकिन कभी इस्तेमाल नहीं हुए। विकेंद्रीकृत भुगतान की बजाय पूरा बजट जिला मुख्यालय पर केंद्रीकृत कर दिया गया। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक फंड नहीं पहुंचा, जिससे गबन की आशंका और बढ़ गई।


अब सवाल उठता है कि जब शासनादेश में बैंक खातों के जरिए भुगतान की स्पष्ट व्यवस्था थी, तो फंड सीधे जिला मुख्यालय से क्यों जारी किया गया? आखिर इस पैसे का इस्तेमाल कहां हुआ?


इस घोटाले का असर सिर्फ स्वास्थ्य केंद्रों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि रोगियों के लिए बनाई गई रोगी कल्याण समिति और जन आरोग्य समिति के खाते भी निष्क्रिय कर दिए गए।


वर्ष 2020-21 से इन खातों में एक भी रुपया ट्रांसफर नहीं किया गया। वित्तीय वर्ष 2016 से ही सभी भुगतान सीधे जिला मुख्यालय से किए जा रहे हैं। केंद्रों का किराया तक नहीं चुकाया गया, जिससे भवन मालिकों ने नोटिस भेज दिए हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को उनके मोबिलिटी फंड का भुगतान भी रोक दिया गया। पिछले दो वर्षों में निष्प्रयोज्य घोषित दवाओं और उपकरणों का कोई हिसाब नहीं।


यह सब दर्शाता है कि स्वास्थ्य योजनाओं का बजट सिर्फ कागजों पर खर्च किया जा रहा था, असल में जनता को कोई लाभ नहीं मिला!


राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन का घोटाला सिर्फ बजट तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आयुष्मान आरोग्य मंदिरों की स्थापना और आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती में भी मनमानी की गई।


वर्ष 2022-23 में 10 नए आयुष्मान आरोग्य मंदिर बनने थे, लेकिन फाइलों में ही दबे रह गए।आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती में पारदर्शिता की धज्जियां उड़ाई गईं। सीडीओ ने पत्रावली मांगी, लेकिन मिशन के अधिकारी टालमटोल करते रहे। इसका सीधा असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ा और मरीजों को दवाएं तक नहीं मिल पाईं।


इस पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए जिलाधिकारी अविनाश सिंह ने उच्च स्तरीय जांच के निर्देश जारी कर दिए हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि "राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन में वित्तीय अनियमितता के मामले की पूरी जांच होगी। सभी संबंधित अभिलेख तलब किए जा चुके हैं, और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी।"


अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस घोटाले में कौन-कौन से बड़े नाम सामने आते हैं और क्या भ्रष्टाचार पर लगाम लग पाएगी?


राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन में हुए इस बड़े घोटाले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि सरकारी योजनाएं जनता की भलाई के लिए बनाई जाती हैं या फिर कुछ अधिकारियों और नेताओं की जेब भरने के लिए?अब देखने वाली बात यह होगी कि  क्या दोषियों को सजा मिलेगी या मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

क्या सरकार इस गड़बड़ी को रोकने के लिए नए नियम लागू करेगी? क्या स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली में कोई बदलाव आएगा?


सवाल बहुत हैं, लेकिन जवाब कब मिलेंगे, यह तो वक्त ही बताएगा!


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