दुनिया के देशों में भारतीय रोगरोधी टीकों की बादशाहत

दुनिया के देशों में भारतीय रोगरोधी टीकों की बादशाहत


- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

देश में जहां आपात् स्थिति में कोविड इंट्रा नेजल टीके को मान्यता मिल गई है तो दूसरी और देश में 200 करोड़ टीकाकरण का महत्वाकांक्षी आंकड़ा छू लिया है। इस सबके बीच यह जानकारी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है कि दुनिया के देशों मेें उपलब्ध होने वाले विभिन्न प्रकार के रोगनिरोधक टीकों में हमारी बादशाहत कायम है। दुनिया के देषों को उपलब्ध कराये जा रहे रोगनिरोधी टीकों में हमारे देश की भागीदारी 60 प्रतिशत से भी अधिक है। यानी कि दुनिया के देशों में लगाए जाने वाले रोग निरोधक टीकें विकसित करने, तैयार करने और दुनिया के देशों को उपलब्ध कराने का लोहा दुनिया के देष मानते हैं। 

कोरोना महामारी के दौर में एक साथ दो वैक्सिनों के उपयोग के लिए अनुमति देने वाला भारत दुनिया का पहला देश रहा है। कल तक अमेरिका, सोवियत रुस व अन्य देशों की और वैक्सिनों की आश लगाए दुनिया के देशों को सबसे अधिक विश्वास भारतीय वैक्सिनों पर ही रहा और यही कारण है कि दुनिया के अनेक देश जल्दी से जल्दी भारतीय वैक्सिनों की सप्लाई शुरु करने का दबाव बनाते रहे। विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने भारतीय कोविड वैक्सिनों को आपात उपयोग की अनुमति की सराहना की। कोरोना काल में भारतीय वैज्ञानिकों ने एक बार फिर दुनिया के देशों को दिखा दिया कि स्वास्थ्य अनुसंधान के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिक दुनिया के देशों में किसी से भी कम नहीं है। बल्कि यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि दुनिया के देषों से कहीं अधिक आगे भारतीय वैज्ञानिक और चिकित्सा जगत रहा है।

दरअसल हम भूल जाते हैं कि दुनिया के देशों में आज भी भारतीय टीकों का डंका बजता है। हम भूल जाते हैं कि दुनिया के विकसित देशों से लेकर विकासशील और अविकसित देशों में भारतीय वैक्सिनों ही नहीं बल्कि दवाओं तक का जादू चलता है। इसे क्या कहा जायें कि आज भी हम हमारे देश में हमारी जैनेरिक दवाओं को वो स्थान नहीं दिला पाएं जो दुनिया के देशों में भारत द्वारा निर्मित जैनेरिक दवाओं को मिली हुई है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि अमेरिका, योरोपीय देशों सहित दुनिया के देशों में जैनेरिक दवाओं की कुल मांग की 20 फीसदी से भी अधिक आपूर्ति भारतीय जैनेरिक दवा निर्यातक कंपनियां कर रही है। इस पर देश को गर्व होना चाहिए कि दुनिया के 60 फीसदी बच्चों को लगने वाली वैक्सिन भारत और भारत की भी सीरम की वैक्सिन ही लग रही है।

 पिछले दिनों एक समारोह में वित मंत्री निर्मला सीतारमण ने बड़े गर्व के साथ कहा भी है कि दुनिया के देशों की जरुरत के टीकों में 60 फीसदी की आपूर्ति भारत कर रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार दुनिया के करीब 170 देशों में डेढ़ अरब दीकों की खुराक हमारा सीरम इंस्टीट्यूट ही कर रहा है। यह सब इसलिए है कि हमारे टीकों को ना केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन से मान्यता प्राप्त और विश्वसनीय माना जाता है अपितु दुनिया के देशों में इन टीकों की गुणवत्ता पर पूरा भरोसा है। याद कीजिए कोरोना के शुरुआती दौर में अमेरिका सहित दुनिया के देशों ने किस तरह से हमारे देश द्वारा निर्मित और मलेरिया के लिए अतिविश्वसनीय दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को उपलब्ध कराने का दबाव बनाया और फिर भारत द्वारा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा अमेरिका को उपलब्ध कराने के कारण आलोचना का शिकार भी होना पड़ा। आलोचना-प्रत्यालोचना अलग बात है पर इसका गर्व होना चाहिए कि अमेरिका जैसे देश को कोरोना हालातों में हमारी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन पर विश्वास जताना पड़ा।

यह कोई अतिशयोक्ति नहीं सर्वमान्य तथ्य है कि आज दुनिया के देशों में बच्चों के जितने प्रकार के टीके लगाए जाते हैं उनमें भारत द्वारा निर्मित टीकों का ही सर्वाधिक बोलबाला र्है। एक जमाने में टिटनस जैसी जानलेवा बीमारी से बचाने के लिए टिटनस का टीका तैयार कर सामने आई पूना की सीरम इंस्टीट्यूट ने पोलियों जैसी बीमारी से निजात दिलाने के लए दो बूंद के नाम से ख्यातनाम पेालियों की पीने की खुराक तक बनाकर दुनिया के देशों को बता दिया कि अनुसंधान के क्षेत्र में हम दुनिया के देशों से दो कदम आगे ही हैं।

 सीरम ने टीटनस के बाद सांप काटने के ईलाज के लिए एंटीडोट्स उतारा। कोविशील्ड के पहले पोलियो वैक्सिन के साथ ही डिप्थिरिया, पर्ट्युसिस, एचआईबी, बीसीजी, आर-हेपेटाइटस बी, खसरा, मम्स, रुबेला जैसे टीकों का निर्माण और निर्यात हो रहा है। 1967 में टिटनस का टीके के उत्पादन से आरंभ इस कंपनी ने 2004 में दुनिया का पहला तरल एचडीसी रैबिज तरल टीका उतारा तो स्वाईन फ्लू का टीका भी उतारा जा चुुका है। आज दुनिया के देशों के बच्चों के जो जीवनदायी टीके लगाए जा रहे हैं उनमें 60 फीसदी भागीदारी हमारे टीकों की है। यह हमारी गुणवत्ता और विश्वसनीयता की पहचान है।

हमें भूलना नहीं चाहिए कि कोरोना के विश्वव्यापी संकट के दौर में हमारे स्वदेशी टीकों की और दुनिया के देश टकटकी लगाए हुए रहे। हमारे वैज्ञानिकों के प्रयास से हीं कोविशील्ड और कोवैक्सिन का डंका भी दुनिया के देशों में बजता रहा। कोरोना काल इसका जीता जागता उदाहरण है। जिस तरह से दुनिया के देश भारतीय वैज्ञानिकों की और आशाभरी नजरों से देखते रहे हैं उससे यह साफ हो जाना चाहिए कि आने वाला समय भी हमारा ही होगा और इसके लिए हमें हमारे वैज्ञानिकों के अनुसंधान की ना केवल सराहना करनी होगी अपितु हमें हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत पर गर्वान्वित भी महसूस करना होगा। यहां एक बात और गंभीरता से समझनी होगी आपातकाल में हम अधिक बेहतर परिणाम देते हैं। 

कोरोना के शुरुआती दौर में जिस तरह से कोरोना किट का संकट आया और कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह से ऑक्सीजन की कमी को लेकर सामना करना पड़ा, उन सभी परिस्थितियों से निपटने में समूचा देश और मशीनरी आगे आई और अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट्स लगने से ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं दिखाई देती। दरअसल हमें कृत्रिम अभाव के हालात में भी हतोत्साहित होने या करने के स्थान पर आलोचना-प्रत्यालोचना की जगह धैर्य का परिचय देना होगा।




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