परन्तु छात्रों की यह जिज्ञासा कौन दूर करे ?

परन्तु छात्रों की यह जिज्ञासा कौन दूर करे ?

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लगभग प्रत्येक वर्ष छात्रों से संवाद स्थापित करने का मनपसंद कार्यक्रम 'परीक्षा पर चर्चा ' गत 27 जनवरी को एक बार फिर आयोजित किया गया। भाजपा शासित राज्यों के कई मुख्यमंत्रियों,मंत्रियों ,केंद्रीय मंत्रियों,सांसदों व विधायकों ने विशेषकर इस कार्यक्रम 'परीक्षा पर चर्चा' में देश में अलग अलग निर्धारित स्थानों पर शिरकत की।






 - तनवीर जाफ़री


 मुख्य संवाद कार्यक्रम प्रधानमंत्री की मौजूदगी में हालांकि दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित हुआ जबकि देश भर में छात्रों को इस कार्यक्रम से ऑन लाइन जुड़ने की व्यवस्था की गयी। ख़बरों के अनुसार 38 लाख छात्रों ने इसमें भाग लेने हेतु अपना पंजीकरण करवाया था। इस बार के 'परीक्षा पर चर्चा' के आयोजन के विशेष पहलू यह थे कि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र यह चर्चा महत्वपूर्ण थी।दूसरा यह कि इस चर्चा में छात्रों के अतिरिक्त शिक्षकों व अभिभावकों को भी शामिल किया गया। राष्ट्रीय मीडिया से लेकर क्षेत्रीय व स्थानीय मीडिया तक ने इस आयोजन को ख़ूब बढ़ा चढ़ाकर प्रकाशित व प्रसारित किया। यदि आप इस चर्चा को किसी राजनैतिक नज़रिये से न देखें तो निश्चित रूप से यह देश के छात्रों का सौभाग्य है कि अपने व्यस्ततम कार्यक्रमों से समय निकाल कर देश के प्रधानमंत्री अपने देश के भविष्य यानी छात्रों से संवाद स्थापित करते हैं और उन्हें परीक्षा संबंधी 'टिप्स ' देते रहते हैं।


                                 परन्तु 2014 में देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने कई बार अलग अलग अवसरों व अलग अलग स्थानों पर अपने जिस 'दिव्य ज्ञान ' का दर्शन दिया है,प्रधानमंत्री की चर्चा सुनने वाले न केवल इन्हीं बच्चों में से लाखों बच्चे बल्कि देश के करोड़ों लोग भी प्रधानमंत्री के उस 'दिव्य ज्ञान' पर न केवल और विस्तृत चर्चा चाहते हैं बल्कि ऐसे कई सवालों व विषयों के सही उत्तर आज भी तलाश रहे हैं ? जिन छात्रों व अध्यापकों से प्रधानमंत्री ने संवाद किया उनमें तमाम छात्र व अध्यापक विज्ञान विषय के भी थे। उन्हें याद है जब 26 फ़रवरी 2019 को बालाकोट पर भारतीय सेना द्वारा की गयी एयर स्ट्राइक के बारे में प्रधानमंत्री ने एक साक्षात्कार में बताया था कि - '' उस ( एयर स्ट्राइक के ) समय वेदर (मौसम) अचानक ख़राब हो गया था. बहुत बारिश हुई थी। विशेषज्ञ (हमले की) तारीख़ बदलना चाहते थे, लेकिन मैंने कहा कि इतने बादल हैं, बारिश हो रही है तो एक फ़ायदा है कि हम रडार (पाकिस्तानी रडार ) से बच सकते हैं, सब उलझन में थे क्या करें। फिर मैंने कहा बादल है, जाइए... और (सेना) चल पड़े... भारतीय विमानों ने खुली जगह में बम गिराए।" प्रधानमंत्री के कहने का तात्पर्य यही था कि उनके कहने पर बालाकोट हमले के दौरान बादलों का तकनीकी रूप से  फ़ायदा उठाकर भारतीय सेना और भारतीय मिराज पाकिस्तान के रडार से बच सका और लक्ष्य पर हमला करने में कामयाब हुआ।


                                 प्रधानमंत्री के इस 'दिव्य ज्ञान ' ने उस समय से लेकर आज तक विज्ञान के छात्रों व वैज्ञानिकों को भी अचम्भे में डाल रखा है। जिन छात्रों को भौतिक विज्ञान में अब तक यह पढ़ाया जाता था कि रडार किसी भी मौसम में काम करने में सक्षम होता है और यह अपनी सूक्ष्म तरंगों के माध्यम से अपने क्षेत्र में आने वाले किसी भी विमान का पता लगा लेता है। परन्तु  छात्रों को परीक्षा के टिप्स देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस 'दिव्य ज्ञान ' वाले अवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित बयान ने विज्ञान के छात्रों को दुविधा में ज़रूर डाल दिया। प्रधानमंत्री के इस बयान का उन दिनों सोशल मीडिया पर ख़ूब मज़ाक़ उड़ाया गया था। प्रधानमंत्री को फ़िज़िक्स पढ़ने की नसीहत भी दी जा रही थी। वैज्ञानिकों द्वारा इस बयान को तकनीकी रूप से बिल्कुल ग़लत बताया जा रहा था। शिक्षा और विज्ञान जगत से जुड़े लोग प्रधानमंत्री के इस बयान को देश के होनहार वैज्ञानिकों का अपमान बताते हुये कह रहे थे कि उनकी क़ाबिलियत का मज़ाक उड़ाने जैसा है। वे ऐसी मूर्खतापूर्ण सलाह प्रधानमंत्री को नहीं दे सकते हैं। भाजपा के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से भी प्रधानमंत्री के इस  'दिव्य ज्ञान ' को ट्वीट किया गया था परन्तु और ज़्यादा फ़ज़ीहत होती देख उसी समय उस 'ज्ञान वर्धक 'ट्वीट को डिलीट कर दिया गया था। परन्तु प्रधानमंत्री से परीक्षा पर चर्चा करने वाले छात्र आज भी दुविधा में हैं कि आख़िर रडार बादलों में काम करता है या नहीं?  



                                     इसी तरह 10 अगस्त 2018 को बायोफ़्यूल डे पर संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नाले की गैस से चाय बनाने वाले एक व्यक्ति का यह क़िस्सा सुनाया था।कि  'मैंने एक बार अख़बार में पढ़ा था कि किसी छोटे से नगर में नाले के पास कोई चाय का ठेला लेकर खड़ा रहता था और चाय बेचता था। चाय बनाने की बात कोई करता है तो मेरा ध्यान उधर चला ही जाता है। वहां एक गंदी नाली बहती थी और इस शख़्स के दिमाग़ में एक आइडिया आया। उसने उस नाली में एक छोटे बर्तन को उल्टा किया और छेद करके उसमें पाइप डाल दी। गटर से गैस निकलती थी, उस पाइपलाइन से वो गैस को अपने चाय के ठेले पर ले लिया। वह उसी गैस का इस्तेमाल करके चाय बनाता था। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद भी सोशल मीडिया पर लोगों ने उनकी इस बात का भी ख़ूब मज़ाक़ उड़ाया था। यदि यह तकनीक सही है फिर आज जबकि रसोई गैस के दाम आसमान पर हैं और देश में चारों तरफ़ नालों में दुर्गन्ध और सड़ांध का साम्राज्य है ऐसे में इससे उपयुक्त अवसर और कौन सा होगा जबकि प्रधानमंत्री की इस कथा पर शोध किया जाये और नाले से गैस ईंधन एकत्रित कर लोगों को राहत दी जाये ? परन्तु शायद उनका यह ज्ञान भी बादल में रडार के निष्क्रिय होने जैसा ही था अन्यथा आज देश के नाले नालियां गैस ईंधन का मुख्य स्रोत बन चुके होते।



                            विज्ञान ही नहीं बल्कि समय समय पर प्रधानमंत्री ने भ्रम पैदा करने वाले इतिहास संबंधी भी ऐसे कई बयान दिये हैं जिससे छात्रों में संशय पैदा हुआ है। सवाल यह है कि प्रधानमंत्री के मुंह से निकले परन्तु भ्रम पैदा करने वाले अनेक बयानों के बाद अब छात्रों की यह जिज्ञासा कौन दूर करे कि अब तक जो कुछ उन्हें पढ़ाया सिखाया व बताया गया वह सही है या प्रधानमंत्री द्वारा समय समय दिया जाने वाला अद्भुत  'दिव्य ज्ञान ' सही है ?



                                                                             



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