निकाय चुनाव: ओबीसी को आरक्षण देने पर आज नहीं आया फैसला, जारी रहेगी सुनवाई

निकाय चुनाव: ओबीसी को आरक्षण देने पर आज नहीं आया फैसला, जारी रहेगी सुनवाई

यूपी के निकाय चुनाव में सरकार ने 2017 में किए गए सर्वे को ओबीसी आरक्षण का आधार बताया है। सरकार ने कोर्ट में दाखिल किए गए हलफनामे में कहा है कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट भी माना जाए। जानें, क्या है पूरा मामला और क्या है ट्रिपल टेस्ट? मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में मंगलवार को बहस हुई पर कोई फैसला नहीं दिया गया। बहस कल भी जारी रहेगी।






यूपी के निकाय चुनाव में अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण के मुद्दे पर मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में सुनवाई हुई। मामले पर कोई फैसला नहीं दिया गया। इस पर कल बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। सोमवार को दाखिल किए गए अपने हलफनामे में यूपी सरकार ने कहा है कि  स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। दायर याचिकाओं के पक्षकारों को उपलब्ध कराए गए जवाबी हलफनामे में सरकार ने कहा है कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। शहरी विकास विभाग के सचिव रंजन कुमार ने हलफनामे में कहा है कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। हाईकोर्ट में अब से कुछ ही देर में मामले पर सुनवाई होगी। सभी पक्ष सरकार के जवाब पर प्रतिउत्तर दाखिल करेंगे। पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है। इस पर सरकार ने कहा है कि 5 दिसंबर, 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।


इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पहले स्थानीय निकाय चुनाव की अंतिम अधिसूचना जारी करने पर 20 दिसंबर तक रोक लगा दी थी। साथ ही राज्य सरकार को आदेश दिया था कि 20 दिसंबर तक बीते 5 दिसंबर को जारी अनंतिम आरक्षण की अधिसूचना के तहत आदेश जारी न करे। कोर्ट ने ओबीसी को उचित आरक्षण का लाभ दिए जाने व सीटों के रोटेशन के मुद्दों को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया था। न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह आदेश रायबरेली निवासी सामाजिक कार्यकर्ता वैभव पांडेय व अन्य की जनहित याचिकाओं पर दिया था।


जनहित याचिकाओं में निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का उचित लाभ दिए जाने व सीटों के रोटेशन के मुद्दे उठाए गए हैं। याचियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत, जब तक राज्य सरकार तिहरे परीक्षण की औपचारिकता पूरी नहीं करती तब तक ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता। राज्य सरकार ने ऐसा कोई परीक्षण नहीं किया। यह भी दलील दी कि यह औपचारिकता पूरी किए बगैर सरकार ने गत 5 दिसंबर को अनंतिम आरक्षण की अधिसूचना के तहत ड्राफ्ट आदेश जारी कर दिया। इससे यह साफ है कि राज्य सरकार ओबीसी को आरक्षण देने जा रही है। साथ ही सीटों का रोटेशन भी नियमानुसार किए जाने की गुजारिश की गई है। याची ने इन कमियों को दूर करने के बाद ही चुनाव की अधिसूचना जारी किए जाने का आग्रह किया। उधर, सरकारी वकील ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया था कि 5 दिसंबर की सरकार की अधिसूचना महज एक ड्राफ्ट आदेश है। जिस पर सरकार ने आपत्तियां मांगी हैं। ऐसे में इससे व्यथित याची व अन्य लोग इस पर अपनी आपत्तियां दाखिल कर सकते हैं। इस तरह अभी यह याचिका समय पूर्व दाखिल की गई है।


रैपिड सर्वे में जिला प्रशासन की देखरेख में नगर निकायों द्वारा वार्डवार ओबीसी वर्ग की गिनती कराई जाती है। इसके आधार पर ही ओबीसी की सीटों का निर्धारण करते हुए इनके लिए आरक्षण का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा जाता है।


नगर निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण निर्धारित करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाएगा, जो निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति का आकलन करेगा। इसके बाद पिछड़ों के लिए सीटों के आरक्षण को प्रस्तावित करेगा। दूसरे चरण में स्थानीय निकायों द्वारा ओबीसी की संख्या का परीक्षण कराया जाएगा और तीसरे चरण में शासन के स्तर पर सत्यापन कराया जाएगा।


इस चुनाव में नव गठित निकायों के परिसीमन भी पेंच फंसा सकते हैं। इससे संबंधित 100 से अधिक मामले हाईकोर्ट में पहुंच गए हैं। इनमें सीमा विस्तार वाले निगमों और पालिका परिषदों के अलावा नवगठित नगर पंचायतों में वार्डों के लिए किए गए परिसीमन में मानकों की अनदेखी से संबंधित मामले शामिल हैं। याचिकाओं में राजस्व ग्रामों में से आधे हिस्से को शामिल करने और छोड़ने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए हैं। आबादी विशेष की बहुलता वाले वार्डों को खत्म करने जैसे मामले भी शामिल हैं। हाल ही में महाधिवक्ता की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इसमें उन सभी शहरी निकायों से जवाब मांगा गया था जिनके यहां हुए परिसीमन को लेकर याचिकाएं दायर हैं। उन नियमों, प्रक्रियाओं व नीतियों का ब्योरा भी मांगा गया है, जिसके आधार पर परिसीमन किया गया था। 


निकाय चुनाव के मामले में सरकार ने जवाब पेश कर दिया गया है। इस पर बहस के बाद मंगलवार देर शाम तक फैसला आने की उम्मीद है। बताया जा रहा है कि हाईकोर्ट का फैसला याचिकाकर्ताओं के पक्ष में आया तो ये चुनाव अप्रैल-मई 2023 तक टल सकते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि यदि फैसला सरकार के पक्ष में आया तो याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में उसे चुनौती देंगे। अगर फैसला सरकार के खिलाफ आया तो वह भी सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी या आयोग का गठन कर चुनाव को चार से पांच महीने के लिए टाल सकती है।


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